इस दिवाली पर ननिहाल में सारा परिवार इकठ्ठा हुआ था । दिन भर रसोई में कुछ न कुछ चलता रहता था । नानी ने कुछ चावल अलग रखवा रखे थे । उनका कहना है कि पुराने चावल ज्यादा अच्छे बनते हैं । बासमती चावल तो अपने नाम के अनुरूप ही बनते ही घर को सुवासित कर देते हैं ।
दिवाली के रोज उस समय घर पर ज्यादा लोग नहीं थे । एक व्यक्ति पीठ पर बोरी लादे घर में दाखिल हुआ । उसने अन्दर आकर कहा " प्रसाद ले लो । " चौक में खड़े सुनीति के मामा ने उस व्यक्ति को मनाकर दिया ।
अचानक किसी अनजान व्यक्ति का घर में यूँ दाखिल हो जाना शहरी लोगों के लिए आश्चर्य का विषय था।
" लेकिन बाबूजी मैं तो हर साल प्रसाद दे जाता हूँ । " व्यक्ति ने कहा ।
"भाई हम बाजार से प्रसाद ले आये हैं । "मामा ने जवाब दिया । इसी बीच नानी भी वहां चली आई थी । उस व्यक्ति ने नानी से भी प्रसाद लेने का आग्रह किया परन्तु नानी ने भी दृढ़ता से मना कर दिया ।
व्यक्ति के चेहरे पर निराशा के भाव उतर आये और वह लौट गया । उसके चले जाने के बाद शहरों में बढती धोखा -धडी की घटनाओं की चर्चा चल पड़ी और उस व्यक्ति का आचरण भी उन्ही सबसे जुड़कर संदेह के घेरे में आ चुका था।
अचानक जैसे बिजली कौंधी !"अरे !ये तो हमारे गाँव का रहने वाला है । यहाँ बाजार में चने खील मुरमुरे बेचा करता है ....और हर साल दीवाली पर अपने गाँव की लड़कियों के यहाँ खील बताशे बांटने आता है ।"
नानी बैचैन हो उठी थी ।
अनजाने ही त्यौहार के दिन ,अपने गाँव के भाई का अपमान कर बैठी थी । "क्या करूँ ,क्या न करूँ ?"आँखों में आंसू भर आये ।
"मैं जरा पड़ोस में देख आऊंउनके यहाँ भी तो गया होगा ।" कहकर नानी नंगे पांव ही चल दी । कुछ ही देर में वह व्यक्ति और नानी घर आ गए ।
नानी अपनी याददाश्त को कोसते हुए बार बार माफ़ी मांग रही थी । उनके उस मुस्लिम भाई की आँखों में भी आंसू थे ।
" बेटी जरा एक बर्तन तो देना ।" व्यक्ति ने सुनीति से कहा ।
बर्तन में प्रसाद लेकर सुनीति ने पूछा "आपके लिए चाय बना दूँ ?"
"बहन बेटियों के यहाँ मैं कुछ नहीं खाता ।" व्यक्ति ने जवाब दिया ।
कुछ देर नानी से अपने गाँव के पुराने परिचितों को याद ताजा कर और दुःख -सुख पूछकर वह चल दिया ।
सुनीति को भाई बहन के इस नि :स्वार्थ प्रेम की सुगंध रसोई में पकते पुराने चावलों की सुवास सी महसूस हो रही थी ..........
स्वरचित रचनाएं..... भाव सजाऊं तो छंद रूठ जाते हैं छंद मनाऊं तो भाव छूट जाते हैं यूँ अनगढ़ अनुभव कहते सुनते अल्हड झरने फूट जाते हैं -वन्दना
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Thursday, July 15, 2010
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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर