Saturday, May 28, 2016

“फूल जंगल में खिले किन के लिए”


नव सुहागिन या वियोगिन के लिए
तारे टाँके रात ने किन के लिए

नीतियों के संग होंगी रीतियाँ
मैं चली हूँ आस के तिनके लिए

बात आसां थी समझ आई मगर
हम अड़े हैं किन्तु-लेकिन के लिए

माँ दुआएँ बाँधती ताबीज में
कीलती है काल निसदिन के लिए

साधनारत हैं स्वयं ये और क्या
“फूल जंगल में खिले किन के लिए”

बाग़ चौपालों बिना बैठें कहाँ
हो कहाँ संवाद पलछिन के लिए  

विष पियाला या पिटारी साँप की
क्या परीक्षा शेष भक्तिन के लिए


-मिसरा-ए-तरह आदरणीय शायर जनाब अमीर मीनाई साहब का 
बह्र: रमल मुसद्दस् महजूफ  

Sunday, May 22, 2016

हलक जड़ी है फाँस


आत्ममुग्ध मानव करे प्रकृति से परिहास
खेल रहा नित आग से देकर नाम विकास

बूँद बूँद की याचना  हलक जड़ी है फाँस
मजबूरी मजदूर की कर्जदार है साँस
मंगल क्या एकादशी रोज रहे उपवास
खेल रहा नित आग से देकर नाम विकास


प्याऊ लगवाना जहाँ इक पवित्र था काम
बोतल पानी की बिके आज वहां अविराम
जीवन मूल्य अमोल का नित देखें हम ह्रास
खेल रहा नित आग से देकर नाम विकास


त्रस्त हो रहा प्यास से है मानव  बेहाल
गायब हैं इस दृश्य से उनका कौन हवाल
पंछी पौधे मूक पशु सब झेलें संत्रास
खेल रहा नित आग से देकर नाम विकास



चित्र : नेट पर काव्य आयोजन से साभार 




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