Friday, November 13, 2020

दीवाली के दोहे

 बांह पकड़ कर दीप की 

बोली नई कपास

गीत लिखेगी रोशनी 

ले स्नेहिल विश्वास

आभा का  संकल्प ले

जले देहरी दीप

नव आशाएं उर धरे

जैसे मोती सीप

  

Tuesday, October 20, 2020

दीवार पार से

 


आकर्षक कैलेंडर भी दीवारों पर उभरे सीलन के धब्बों को छुपा नहीं पाते |


जब इन्हीं दीवारों के साथ मुझे रहना है तो क्यों इनका बदरंग होना मुझे खलता है ? क्यों बार-बार ऐसा लगता है कि दीवार पार रहने वालों की परछाइयाँ धब्बों के रूप में मुझे सताने चली आती हैं ? उनकी कमियां उनकी खामियां सभी कुछ दीवार पर उभर आते हैं | आखिर उनमें कमियां न होती तो ये दीवार हमारे बीच क्यों होती ?


यह सब सोच ही रही थी कि लगा जैसे दीवार की दरारों से शब्द फिसल रहे हैं और अनुरणन करते हुए कमरे में फ़ैल रहे हैं ,स्वर मेरा नहीं है पर शब्द अक्षरश: वही हैं ..... सीलन ...धब्बे .... खामियाँ .... शायद दीवार पार से ...



Wednesday, April 8, 2020

मैं मुट्ठी में जुगनू भरकर
सौदा सूरज से करती हूं
धता बताऊं तृष्णा को मैं
ऐसे साधन भी रखती हूं
बटुए में आशाएं रखकर
फुटकर सपने आंचल बांधे
कुलदीपक को सिखलाऊं मैं
कैसे अपनी राहें साधे
श्रम के सीकर जिसे सींचते
उस पथ से रोज गुजरती हूं
मैं मुट्ठी में.....
आवां की गोदी में तपकर
शीतलता बरसाने वाली
आंसू का खारा जल पीकर
अपनी प्यास बुझाने वाली
होंठों पर मुस्कान सजाए
डलिया में दिनकर रखती हूं
मैं मुट्ठी में जुगनू भरकर सौदा सूरज से करती हूं

_ वंदना

आदरणीय Kailash Meena जी की वाल के चित्र से प्रेरित

Tuesday, March 24, 2020

सर्वे संतु निरामया:

पिछले दिनों एक शब्द ‘अनुनाद’ बहुत सुनने को मिला | लोगों के अलग अलग विचार भी पढने को मिले तो लगा कि विज्ञान में पढ़े इस शब्द को फिर से समझा जाए | दो उदाहरण याद आते हैं एक रेडियो का और एक सैनिकों की ट्रेनिंग का |
रेडियो पर हम पसंदीदा कार्यक्रम सुनने के लिए उसे एक विशेष आवृत्ति पर सेट करते हैं | रेडियो स्टेशन से प्रसारित आवृत्ति और रेडियो सेट की आवृत्ति एक होने की दशा में ही हम मनपसंद प्रोग्राम सुन पाते हैं |
सैनिकों को ट्रेनिंग देते वक़्त यह कहा जाता है कि पुल खासतौर पर निलंबित पुल से गुजरते वक़्त वे एक सी कदमताल न रखें क्योंकि पुल की अपनी एक आवृत्ति होती है और अगर वह आवृत्ति कदमताल की आवृत्ति के समान हो जाए तो पुल के टूटने की सम्भावना बढ़ जाती है| ओपेरा गायकों के गाने से कांच के गिलास के टूट जाने की घटना भी अनुनाद से ही सम्बंधित है |
अनुनाद एक ऐसी घटना है जो अपने प्रभाव के घटित होने के लिए समान आवृत्ति की मांग करती है यानि अपनी-अपनी ढपली अपना-अपना राग तो अनुनाद के घटित होने के लिए अप्रभावी है |
अब बात करें अध्यात्म की जो ध्यान की वकालत करता है | ध्यान में हमारे दिमाग के कम्पनों की आवृत्ति ब्रह्माण्ड के कम्पनों की आवृत्ति से एकरूप (तन्मय) हो जाएं तो साधक परमानंद की अवस्था प्राप्त कर लेता है |
अनुनाद का परिणाम आनंददायी भी हो सकता है और विध्वंसात्मक भी | मेरा इस पोस्ट को लिखने का कारण है कि सोशल मीडिया पर एक-दूसरे को मूर्ख साबित करने का जो कम्पीटीशन चल रहा है वो भयानक है |जब हम किसी दूसरे को मूर्ख कह रहे होते हैं तो अगले के दिमाग में तरंगें ही उत्पन्न कर रहे होते हैं | अब दो विरोधी विचार रखने वालों की प्रतिकारात्मक तरंगें तन्मय हो कर विध्वंस ही पैदा करेंगी क्योंकि मूर्ख शब्द तो कॉमन है शब्द के प्रति उठने वाली भावनाओं की तरगें भी कॉमन हैं तो इन तरंगों का समान आवृत्ति हो जाना भी एक सामान्य घटना होगी और अनुनाद के रूप में विध्वंसात्मक घटना |
बहुत पीड़ा होती है जब देखते हैं कि महिलायें करवाचौथ पर जिस तरह एकत्र होकर कहानी सुनती हैं उसी तरह  कोरोना वायरस कथा का सीन वायरल हो रहा है ,कहीं सामूहिक गीत गायन हो रहा है | विभिन्न चैनल  जनता कर्फ्यू के दौरान  25 -30  लोगों को एकत्र कर कवरेज दे रहे हैं | अपने आसपास 20 लोगों का सैंपल चेक कीजिए अधिकतर लोगों ने घंटियाँ शंख इत्यादि कोरोना को भगाने के लिए बजाये न कि मेडिकल और प्रशासनिक कोरोना योद्धाओं के लिए | लोगों की गलतियाँ क्षम्य हो सकती हैं क्योंकि आज भी शिक्षित वर्ग के ग्रुप्स में तथाकथित चमत्कारों को 5-7 ग्रुप्स में फॉरवर्ड करने के उदाहरण सामने आते हैं तो शिक्षा पर सवाल उठते हैं |पर समाचार चैनल भी अपना दायित्व नहीं समझते ?? उनका यह प्रस्तुतिकरण उनकी गैर जिम्मेदारी को बताता है |
आइये इस मुश्किल समय में सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः के एक समान मन्त्र(विचारों) के अनुनाद से हम मानसिक शक्ति एकत्र कर इस कष्ट से मुक्ति पायें |मज़ाक में भी अन्धविश्वास और अफवाहों को बढ़ावा देने वाले  विडियो फॉरवर्ड न करें |यथा संभव घर रूककर प्रशासन की मदद करें देश के प्रतिबद्ध सिपाहियों की तरह सबको सुरक्षा दें |
एक बार फिर मेडिकल और प्रशासनिक टीम के रूप में डटे योद्धाओं को नमन |

Thursday, March 12, 2020

निकाला यूं खसारे से खसारा जा रहा है

चलन अब जिंदगी का यूं सुधारा जा रहा है
कहीं अस्तित्व को अपने नकारा जा रहा है
बनाए चित्र तारों के अंधेरों के पटल पर
निकाला यूं खसारे से खसारा जा रहा है
बढ़ा तारीकियों का जोर पिघला है मुलम्मा
कि जबरन  रंग सूरज का उतारा जा रहा है
अचानक यूं तेरा जाना न आया रास मुझको
मेरे हर रोम से तुझको पुकारा जा रहा है
वो जो खुद टूटकर भी दे रहा था आस हमको
चमक अब आखिरी देकर सितारा जा रहा है
बिखरने के भी होते हैं किसी के ठाठ ऐसे
महक देकर वो फूलों का इदारा जा रहा है
खिले हैं फूल वैसे ही तेरे आंगन में माई
जिन्हें सूनी सी आंखों से निहारा जा रहा है

मां की याद में___

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