वो नन्हीं
निरीह सी चिड़िया
कहीं से अचानक आ गिरी थी
मेरे हाथों मे
सिमटी बैठी
फाल्गुनी रंगों की
कोई गठरी थी
तभी ताजा हवा का कोई झोंका
उसे सहला गया
शक्ति भर फेफड़ों में
तरंगित कर गया
फिर मैनें उसे
आसमानी आतिश की तरह
गगन पटल पर देखा
आँखों में जुगनू भर
रोशनी से
दिया उम्मीद का जला लिया
उस चिड़िया के रूप में
मेरे भावों ने
क्षितिज को पा लिया
वो चिड़िया
वस्तुतः चिड़िया नहीं
मेरी
पहली कविता थी
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,भावपूर्ण सुंदर रचना,...
ReplyDeleteवंदना जी,आप बहुत दिनों से पोस्ट पर नही आई
आइये स्वागत है
RESENT POST...काव्यान्जलि ...: बसंती रंग छा गया,...
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
सुंदर प्रस्तुति ....
ReplyDeletepahli kawita ka sukh.....bhaw liye kawita
ReplyDeletebahut sunder bhav..........
ReplyDeleteaapki kavita roopy chidia ke rang birage pankh dekhkar man abhibhoot ho gaya..ye chidia blog ke raste mujhtak pahuchi..ye tamam logon tak pahunchkar aapka sandesh pahunchaaye..aisi meri shubhkamnayein hain...sadar badhayee aaur amantran ke sath
ReplyDeleteतरंगित कर रही है आपकी पहली कविता ..
ReplyDeleteअच्छी लगी आपकी परवरिश .........
ReplyDeleteअति सुन्दर....
ReplyDeletebahut sunder....apki pahli kavita.
ReplyDeleteवो चिडि़या
ReplyDeleteवस्तुतः चिडि़या नहीं थी
मेरी पहली कविता थी।
बहुत सुंदर, बहुत सुंदर...
अच्छी कविता।
बहूत सुंदर...
ReplyDeleteवाकई 'तरंगित' कर गई ये कविता...सुन्दर भाव .
ReplyDeletebahut khubsurat rachna hai,man ko chhuti hai,badhai.
ReplyDeleteअँधेरों को ठेलते हुए
ReplyDeleteकर लेनी है मुट्ठी में
अपने हिस्से की रोशनी
और भर लेनी है डैनों में
इतनी शक्ति
कि कोई ब्लैक होल
निगल न सके
हौसलों को
क्या बात है
इसी लिए किसी शायर ने कहा है
पंखो से कुछ नही होता हौसलों से उड़ान होती है
बेहतरीन रचना ।
वंदना जी एक बात और पूछनी है आपसे,
हमें भी अपने ब्लॉग मे कविताओं और गज़लों को अलग -अलग फ़ोल्डर्स मे करना है जैसा अपने मैन्यू बनाया है कृपया मार्गदर्शन करें ।