Friday, July 9, 2010

ग़ज़ल (चाँद रोटी सा )

चाँद रोटी सा लगे तो लौट आना गाँव में
गंध सौंधी सी जगे तो लौट आना गाँव में

आसमां की गोद में रंगों की हो अठखेलियाँ
बिटिया सयानी दिखे तो लौट आना गाँव में

महक मेहंदी की रहे मन भरमाये चूड़ियाँ
ओढ़नी धानी खिले तो लौट आना गाँव में

गुमनाम होती बस्तियों में भीड़ के ही बीच में
सांस पहचानी लगे तो लौट आना गाँव में

यादों की दहलीज़ पर मुस्करा दे एक दिया
आँख का पानी छले तो लौट आना गाँव में

हाथ तेरे बांधे हुए रेशमी मजबूरियां
हूक राखी की उठे तो लौट आना गाँव में

हौसला दिल चाहता हो हाथ एक सिर पर रहे
ज़िन्दगी पल पल खले तो लौट आना गाँव में

धडकनें सुनाने लगी माँ की अब कहानियां
झर झर असीसें झरें तो लौट आना गाँव में

2 comments:

  1. गांव की बात ही निराली है .. जब भी इच्‍छा हो .. लौट आना गांव में .. सुंदर रचना !!

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  2. किसी एक शेर की तारीफ करना दूसरे साथ नाइंसाफ़ी होगी सभी शेर लाजवाब है गाँव की याद आ गई ।

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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