Saturday, April 28, 2012

वाणी



घर में शादी की तैयारी चल रही है .सभी लोग काम में लगे हुए हैं . दादी के कमरे के एक कोने में खिन्नमना बन्नी वाणी बैठी है और दूसरी ओर कुछ बच्चे दादी को घेर कर बैठे हैं कहानी सुनने के लिये .

.....दरवाजे पर दो-दो बारातें एक पिता की बुलाई हुई और दूसरी भाई की तय की हुई .दोनों बारातें सशक्त राजपरिवारों की .किसी को भी लौटाना संभव नहीं ...ब्याह के नगाड़े युद्ध के नगाड़े बनते देर नहीं लगती थी उन दिनों .....बात राजकुमारी कृष्णा तक पहुंची ....राज्य की आन पिता और भाई का मान बचाने के लिये राजकुमारी कृष्णा ने  हीरे की अंगूठी निगल ली ......आत्मोत्सर्ग कर दिया राजकुमारी ने ...देशहित .....परिवारहित....


 


कहानी के कुछ-कुछ अंश वाणी के कानों में पड़े थे .विचारों का झंझावात चल रहा था .....परिवार हित ....!! ब्याह हो रहा है वाणी का या सौदा किया जा रहा है.... अच्छे परिवार के लड़के से रिश्ता जोड़ने की कीमत दी जा रही है ....जमीन बेचकर गाड़ी और नगदी का इंतजाम किया जा रहा है .....
दुल्हन की इच्छा का तो पहले भी कोई मोल नहीं था और पढ़-लिखकर भी  क्या कुछ नहीं बदल पाई नारी ? नहीं ...वह अपने पैरों पर खड़ी है . वह स्वीकार नहीं करेगी यह मोलभाव .... यह जमीन उसके परिवार की आजीविका है ..वह उसे नहीं बिकने देगी . जो व्यक्ति  बिना दहेज के उससे विवाह नहीं कर सकता वह वाणी का सम्मान करता है या गाड़ी नगदी का ...
...नहीं अब अपने और अपने परिवार दोनों के ही 
सम्मान की रक्षा वह करेगी , लेकिन राजकुमारी की तरह नहीं ..अपने तरीके से ...नए तरीके से ...लौटा देगी ऐसे रिश्ते को दरवाजे से जो उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचा रहा है ...
अपना निर्णय परिवार वालों को सुनाने के लिये तैयार है वाणी .








images : thanks google image 

Saturday, April 14, 2012

नाम दोष



आजादी के वक़्त की बात है चेतना ने  दो बच्चों को जन्म दिया और बड़े प्यार से उनका नाम रखा ... अधिकार और कर्तव्य . पहले अधिकार जन्मा फिर कर्तव्य . 
चेतना ने हमेशा दोनों सहोदरों को एक सा प्यार और पालन पोषण दिया लेकिन   अधिकार लोगों को अधिक आकर्षक लगा तो जनता का दुलारा बन अच्छा फूला-फला . शुरू-शुरू में तो कर्तव्य ने भी काफी हाथ पैर मारे कि उसे भी कुछ मिल जाये पर....
उधर चेतना भी दुर्बल हो रही थी तो उसका साथ भी कितने दिन मिलता इसीलिये  धीरे-धीरे भाग्य की दुर्बलता मान उसने गुमनामी को स्वीकार कर लिया था . दूसरी ओर  अधिकार का व्यापार अच्छा चल निकला और अब शहर ही नहीं देश-विदेश में भी अनेकों संस्थाएं उसके नाम से विकसित हो रही थी जिनकी चर्चा अख़बारों में अक्सर पढ़ने को मिल जाती थी .
अधिकार की नई पीढ़ी पर भी भाग्य का वरद हस्त रहा  लोगों ने उन्हें राजा का बेटा कहकर पता नहीं भय से या सम्मान से सदा ही शीश नवाया . शायद .... समरथ को नहीं दोष गुसाईं....मानकर
एक दिन एक ढाबे पर एक छोटे से बच्चे को चाय पकडाते देखा . बड़ा ही मासूम और प्यारा सा ....देखा कि लोग उससे हंसी ठट्टा कर रहे थे और चिढा रहे थे देखो इसका नाम भी अधिकार है देखो यहाँ बर्तन मांज रहा है अधिकार... उत्सुकतावश मैंने उस बच्चे से पूछा तुम्हारा असली नाम अधिकार ही है ! 
उसने कहा हाँ.
 ...उसके नाम में दोष है.... वहीँ बैठे किसी ज्योतिषी ने कहा
मैंने पूछा कैसे?  
उन्होंने कहा अधिकार के साथ शिक्षा भी जोड़ दिया है ना इसलिए दोष है .(अधिकार शिक्षा का )
तुम्हारा नाम किसने रखा? मैनें बच्चे से पूछा.
बाबा ने उसने उत्तर दिया
और तुम्हारे बाबा का नाम?”
कर्तव्य....  इतना कहकर वह  जूठे गिलास समेटने लगा .




Sunday, April 1, 2012

बुर्जुआ पूंजीपति



फ्लडलाइटों की चकाचौंध के बीच
अचानक दिखने लगती है
चाँद की उदासी मुझे
उकेरना होता है जब
लाजवाब शब्द चित्र कोई
कोस लेती हूँ मैं
निरंतर कद बढ़ा रही अट्टालिकाओं को
जब लगता है इन्हीं की वजह से
नहीं पहुँच पाई
मेरे आँगन में
मेरे हिस्से की धूप
सुर मिलाती हूँ उन आवाजों के साथ
जो गाती हैं क्रान्तिगान
सत्ता और पूँजी की जुगलबंदी के खिलाफ
स्वतः ही जुड जाता है अपनापा
खेत जमीन नदी पहाड़ के साथ
गहरे निकट सम्बन्धी प्रतीत होते हैं
मजदूर किसान
उनकी बेबसी लाचारी
सब अपनी सी लगती है
किन्तु जब देखती हूँ
विश्व-बाज़ार में
मायावी कंचन-मृग कोई
तो मंत्रमुग्ध सा चल पड़ता है
उसके पीछे
मेरे मन में छुपा बैठा
बुर्जुआ पूंजीपति कोई 

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