Monday, October 22, 2018

ग़ज़ल



मुस्कुरा कर बुला गया है मुझे
एक बच्चा रिझा गया है मुझे
सांसों में जागी संदली खुशबू
कोई देकर सदा गया है मुझे
दीप बनकर जलूँ निरंतर मैं
जुगनू देकर दुआ गया है मुझे
दुख मेरा दूजों से लगे कमतर
सब्र करना तो आ गया है मुझे
हक में उसके सदा जो रहता था
आइना फिर दिखा गया है मुझे
थी सराबों की असलियत जाहिर
फिर भी क्यूँकर छला गया है मुझे
अब शिकायत हवा से कैसे हो
कोई अपना बुझा गया है मुझे



मिसरा- ए- तरह सब्र करना तो आ गया है मुझे जनाब समर कबीर साहब की ग़ज़ल से 




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