"माँ !टीचर कह रही थी कि पौधे की टहनी को मिटटी में लगाने से नया पौधा तैयार हो जाता है!"......मिटटी के घरौंदों को छोटी -छोटी टहनियों से सजाती नन्ही दिति ने अचरज से पूछा ।
"हाँ बेटा !" उत्तर देकर में अपनी विचार यात्रा पर चल पड़ी ।
यूँ तो गाँव जाना कभी - कभी ही संभव हो पाता पर जब भी जाती ,सभी के विशेष स्नेह में नहाई डोलती रहती । मुझे सभी पलकों पर बिठा कर रखते ,रोकने - टोकने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था । उस पर भी अगर मेरी मन-मानी न चले तो तुरंत दादी के पास शिकायत ले पहुँचती । शिकायत बड़ों की हो या छोटों की ,दादी हमेशा मेरी पक्षधर हुआ करती ।
.....पर उस दिन उन्होंने भी मेरी शिकायत हंसकर टाल दी ,जब भोला ताऊजी ने मुझे ऊँचे स्वर में चुन्नी सिर पर न रखने के लिए डांटा ।
मैं तो शहर में फ्रोक पहना करती थी । गाँव की वजह से सलवार-सूट पहनना पड़ता । उस पर सर पर चुन्नी रखने रखनेवाली बात कतई नहीं जमी तो तुरंत डबडबाई आँखे लेकर पहुँच गयी दादी के पास ..... मगर वहां भी सुनवाई नहीं ...... । खैरकुछ समय बाद इस किस्से को भूल गयी । आखिर बचपन था न ।
पिछले दिनों गाँव गयी तो पता लगा , भोला ताऊजी नहीं रहे । जिक्र छिड़ा तो बात सामने आई कि ताऊजी हमारे गाँव के नहीं थे वो किसी दूसरे प्रान्त से आये थे और दादाजी से "कुछ भी काम करूँगा ...." कहकर शरण मांगी थी ।
छत मिली तो परिवार भाषा संस्कृति सब कुछ ऐसे अपना लिया कि मुझे तो कभी यह पता ही नहीं चला कि उनका हमारे परिवार से क्या सम्बन्ध था ।
"क्या फिर वो कभी अपने गाँव नहीं गए ?" मैंने पूछा था ।
" नहीं बल्कि एक बार उनके परिवार वाले उन्हें लेने आये थे , पर उन्होंने साफ़ मना कर दिया था । दादाजी ने भी उन्हें उनकी इच्छा पर छोड़ दिया था । "
आज समझ पायी हूँ ,दादी ने उन्हें क्यों कुछ नहीं कहा था । वे ताऊजी के स्वाभिमान की रक्षा करना जानती थीं । वो दादी की नज़र में एक नौकर नहीं वरन घर के एक सम्मानित सदस्य थे ।
"माँ! क्या सभी टहनियां मिटटी में लगाने से पौधा बन जाती हैं ?" दिति खेल ख़त्म करके मेरे पास आ गयी थी ।
"नहीं बेटा सभी टहनियां तो नहीं लगती । हाँ कुछ खास टहनियां भी तभी लगती हैं जब उन्हें पोषण के साथ साथ प्यार केजल से सींचा जाये ।
स्वरचित रचनाएं..... भाव सजाऊं तो छंद रूठ जाते हैं छंद मनाऊं तो भाव छूट जाते हैं यूँ अनगढ़ अनुभव कहते सुनते अल्हड झरने फूट जाते हैं -वन्दना
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Tuesday, July 6, 2010
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जी हाँ टहनियों को भी उर्वर जमीन और प्यार का संरक्षण चाहिये.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर संस्मरण
बहुत सुन्दरता से बात कही है..कहानी कहूँ या संस्मरण...मगर लेखन प्रभावशाली है. बधाई.
ReplyDeletepahli bar aapke blog par aayee ...jane kitani purani post padh gayee...bahut sunder likhati ho...badhai..
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