Sunday, December 29, 2013

नक्श फ़रियादी है .....


इक तसल्ली इक बहाना जो मिले ताखीर का 
हम न पूछेंगे खुदाया क्या सिला तदबीर का

आँख पर बाँधे हुए कानून काली पट्टियाँ
हौसला कैसे बढ़े ऐसे में दामनगीर का

गुफ़्तगू अंदाज तेवर धार की पहचान हो
शख्स़ ऐसा क्या करेगा फ़िर भला शमशीर का

हम भी आखिर सीख लेंगे इस गज़लगोई का फ़न
हमक़दम होने लगा है जब हुनर अकसीर का

रेत के दाने मुसल्सल परबतों से तुल रहे
खास है मौसम कि या फिर खेल राह्तगीर का

रंज राहत धूप छाया इब्तिदा या इन्तिहा
नक्श फ़रियादी है किसकी शोखी ए तहरीर का

उलझनों से जूझ लेते हौसला तो था बहुत
इक सही सा मिल न पाया लफ्ज़ बस तकबीर का


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तरही मिसरा जनाब मिर्ज़ा ग़ालिब साहब की ग़ज़ल से 

नक्श फ़रियादी है किसकी शोखी ए तहरीर का 

Sunday, December 15, 2013

अंजामे मुहब्बत

इस दुनिया में बहती सदा इल्हामे मुहब्बत
है खास वही जिस पे हो अकरामे मुहब्बत 

बंसी की मधुर तान बँधे राधिका मोहन
रचती है महारास यहाँ नामे मुहब्बत

लिख लेते कोई किस्सा या दिलशाद कहानी
'मालूम जो होता हमें अंजामे मुहब्बत'

मासूम कोई तितली नज़र की जरा ठहरी
वो समझे कि भेजा गया पैगामे मुहब्बत

मिट्टी के पियालों में समन्दर की हिलोरें
चढ़ता है नशा पी के यूँ ही जामे मुहब्बत

तल्खी जो सही धूप की होना था गुलाबी
होने लगी है सर्द मगर शामे मुहब्बत

जागीर है यह रूह की सींचो जो लहू से
बहती युगों तक रहती है यह नामे मुहब्बत

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मिसरा ए तरह शायर जनाब  शेख इब्राहीम "जौक" की ग़ज़ल से 

( thanks to Mr.VIVEK GOYAL शब्दों के अर्थ के लिए कर्सर को शब्द पर ले जाते ही हम अर्थ देख पाएंगे यह सुविधा इन्हीं के द्वारा उपलब्ध कराई गयी है जैसे 
महारास=परमानन्द की वह अवस्था जिसमें मैं तू और तू मैं यानि अभेद हो जाते हैं )

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