Tuesday, July 13, 2010

ग़ज़ल (इम्तिहान बाकी है ..)

तू थक गया है क्यूँ अभी इम्तिहान बाकी है
चल उठा पतंग तेरे लिए आसमान बाकी है


हवा जब करके चलती है रेत पर चित्रकारी
नहीं देखती मुड़कर क्या क्या निशान बाकी है

स्वाभिमान तलक जिसने मेरा रख लिया गिरवी
कहता है बेचने को अभी सामान बाकी है

दुनिया ये तेरी मनचाही दुनिया कैसे हो
तेरे मेरे भीतर थोडा शैतान बाकी है

यूँ तो कहने को हम आजाद हैं लेकिन
मुश्किल यही है ,खुद की पहचान बाकी है

दिल की मासूमियत आँगन में भीगने चली
गगन की झोली से बरखा का दान बाकी है

चलो लड़े-झगडे और लिखे इतिहास फिर बोझिल
अभी मासूम चेहरों पर मुस्कान बाकी है

एक -एक करके कहानियां सभी सुना चुके हम
जिद करें हैं बच्चे ,दक्षिणा यजमान बाकी है

गुडिया , लोरी ,थपकी और मीठी यादें माँ
छूटा तेरी गोदी में मेरा सामान बाकी है ।

1 comment:

  1. चलो लड़े-झगडे और लिखे इतिहास फिर बोझिल
    अभी मासूम चेहरों पर मुस्कान बाकी है
    बहुत सुन्दर ... तीखा स्वर .. बेमिसाल

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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