Friday, May 28, 2010

पानी

ढूँढोगे मन हिरणा किधर गया पानी
आज अगर आँखों से उतर गया पानी

सीपी के गर्भ में रहकर दो चार दिन
मोती बन के देखो सँवर गया पानी

कभी बिगाड़े कभी संवारे गाँव घर
जब जब जिस रस्ते से गुज़र गया पानी

पूछा कैसे गुजारी ज़िन्दगी की शाम
क्यूँ माँ की आँखों से छलक गया पानी

सजा देगा उपवन बादल का कारवां
अंजुरी भर धोरों में बिखर गया पानी

उजड़ी कोई माँग सिसक रही राखियाँ
यूँ आतंकी आँख का मर गया पानी

सिरजेगा नवजीवन तपेगा दिनोदिन
यूँ ही नहीं समंदर ठहर गया पानी

झील ने गाया मर्यादा का गीत है
अंगुली भर छुअन से सिहर गया पानी ।

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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