Monday, May 3, 2010

ग़ज़ल (क़द की ऊंचाइयों की ...)


ग़ज़ल
कद की ऊँचाइयों की हकीकत नज़र आएगी
जब हालात की धूप में परछाई सिमट जाएगी

हर एक लकीर आखिर छोटी हो ही जायेगी
जब कोई लम्बी रेखा करीब से गुजर जायेगी

गुमनाम बुनियादी पत्थर जो सो रहे खामोश
गर बदलेंगे करवट दरो दीवार सिहर जायेगी

अपनी परवाज़ की खातिर मत तितलियों को मार
पंख कभी तेरे भी समय की धार क़तर जायेगी

पत्थरों के बल पर सूरत नहीं बदल जायेगी
देखना तस्वीर तेरी आईने में बिखर जायेगी

होगा खुद से सामना वो घडी भी आएगी
तब दुनिया की भीड़ में फरियाद बेअसर जायेगी

1 comment:

  1. bahut acchi gazal hai i like these lines "अपनी परवाज़ की खातिर मत तितलियों को मार
    पंख कभी तेरे भी समय की धार क़तर जायेगी
    पत्थरों के बल पर सूरत नहीं बदल जायेगी
    देखना तस्वीर तेरी आईने में बिखर जायेगी"

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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