बस्ते में मेरे कैसे सिमट सकती है दुनिया
जी चाहता है मैना बुलबुल के गीत सुनने
बारिश में भीगने का सपना लगा हूँ बुनने
केवल तस्वीरों में टंगे देखे मैंने नदी झरने
बंद कमरों में कौन आएगा कल कल का नाद भरने
चारों तरफ है मेरे बंद कांच की खिड़कियाँ
छूने को आसमां मचलती मेरी हथेलियाँ
बैठूं न कभी छत पर देखी न मंदाकिनियाँ
किताबों से कैसे नापूं चाँद तारों की दूरियां
पंख तो है मेरे पास मुझे आकाश चाहिए
मुझ जैसा ही नन्हा सा मुझे विश्वास चाहिए
पिंजरे से बाहर खुली हवा का आभास चाहिए
मन में उठते हर सवाल का मुझे ज़वाब चाहिए ।
स्वरचित रचनाएं..... भाव सजाऊं तो छंद रूठ जाते हैं छंद मनाऊं तो भाव छूट जाते हैं यूँ अनगढ़ अनुभव कहते सुनते अल्हड झरने फूट जाते हैं -वन्दना
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Friday, May 28, 2010
जवाब चाहिए
फूलों से कैसे दोस्ती बढाती है तितलियाँ
क्यूँकर हाथों से फिसल जाती है मछलियाँ
उड़ने को कैसे पंख फैलाती कोई चिड़िया
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इस ब्लॉग पर प्रकाशित सभी रचनाएं स्वरचित हैं तथा प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं यथा राजस्थान पत्रिका ,मधुमती , दैनिक जागरण आदि व इ-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं . सर्वाधिकार लेखिकाधीन सुरक्षित हैं
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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर