Sunday, January 5, 2014

पापा कहते हैं बड़ा काम करेगा


अब भी झांकती हैं
चश्मे के पीछे से वर्जनाएं
अभिलाषाएं आज भी
क़ैद हैं मुठ्ठियों में
जिन्हें बगल में दबाये
खड़े होते हो तुम
परछाइयों की तरह
कि जब भी चाहता हूँ कोई
लक्ष्मण-रेखा लाँघना
सोचता था हो जाऊँगा बड़ा
इतना कि मेरा बेटा
नहीं ताकेगा पडोसी की
लाल साईकिल
भरा रहेगा फ्रिज
चाकलेट टॉफी से
व कमरा उन खिलौनों से
जिन्हें हम देखा करते थे दूर से
कमरा आज वाकई भरा है
खिलौनों से
जहाँ तुम्हारा लाडला पोता 
बैठा है रूठा हुआ
कि दिलवाया नहीं प्ले-स्टेशन
और ना ही देता हूँ उसे
स्कूटर चलाने की इजाजत
क्योंकि महज सातवीं में है वो
और कमरे की दहलीज पर
अपनी ऊष्मा से
बर्फ पिघलाते हुए तुम
उसे सहलाते समझाते
दे रहे हो सांत्वना मुझे
कि कामनाओं के असीम आकाश से
अनुकूल सितारे चुन लेना ही
होता है
बड़ा काम

8 comments:

  1. भावपूर्ण
    सुन्दर प्रस्तुति

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  2. सुन्दर भावपूर्ण रचना.....बधाई वंदना

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  3. बहुत सुन्दर और आशा लिए रचना के भाव ... अपने सितारे स्वयं चुनने होते हैं विस्तृत आकाश से ...

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  4. sundar kuchh alag si lagi prastuti .....

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  5. बहुत सुंदर ...मन को भाती, मर्म को छूती रचना

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  6. कविता का अंत बहुत अच्छा लगा. उस समझ को आने में काफी वक़्त लग जाता है. सुन्दर रचना.

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  7. कि कामनाओं के असीम आकाश से
    अनुकूल सितारे चुन लेना ही
    होता है
    बड़ा काम
    ...बहुत सटीक चिंतन...बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...

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  8. आये दिन इस बड़ा काम से मिलना होता ही है। सुंदर कहा है।

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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