स्वरचित रचनाएं..... भाव सजाऊं तो छंद रूठ जाते हैं छंद मनाऊं तो भाव छूट जाते हैं यूँ अनगढ़ अनुभव कहते सुनते अल्हड झरने फूट जाते हैं -वन्दना
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Tuesday, January 14, 2014
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इस ब्लॉग पर प्रकाशित सभी रचनाएं स्वरचित हैं तथा प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं यथा राजस्थान पत्रिका ,मधुमती , दैनिक जागरण आदि व इ-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं . सर्वाधिकार लेखिकाधीन सुरक्षित हैं
सुन्दर पंक्तियाँ और चित्र भी बहुत प्यारा है.
ReplyDeleteसुन्दर मुक्तक ,भाव भी सुन्दर !
ReplyDeleteमकर संक्रान्ति की शुभकामनाएं !
नई पोस्ट हम तुम.....,पानी का बूंद !
नई पोस्ट बोलती तस्वीरें !
वाह.....
ReplyDeleteक्या खूब कहा!!!
सस्नेह
अनु
अजी ,वाह!वाह!वाह!
ReplyDeleteवाह....सुन्दर मुक्तक सुन्दर भाव
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है आपने |वंदना जी आभार
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