हर सपना नीलाम हुआ है
जब गिद्धों को सौंपा शासन
साँसों पर तो चील झपट है
हैं खाली प्राणों के बासन
आज़ादी की सुबह में घोला
अंधियारी रातों का काजल
मन में अपने झांक सके ना
कहते मैला जग का आँचल
कैसे कोई सलीब उठाये
बुढ़ा रहा यूँ ही यौवन
खून से लथपथ हर काया के
नज़दीक सियारों के आसन
तिनके तिनके सपन जुटाए
आयेंगे मौसम मनभावन
हुआ गुमशुदा फागुन अबके
भटक गया है रस्ता सावन
अंधेरों में साए पराये
आसकिरण भी भूली आँगन
कोई सीता किसे पुकारे
जटायु पर भारी अब भी रावण
स्वरचित रचनाएं..... भाव सजाऊं तो छंद रूठ जाते हैं छंद मनाऊं तो भाव छूट जाते हैं यूँ अनगढ़ अनुभव कहते सुनते अल्हड झरने फूट जाते हैं -वन्दना
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Sunday, June 20, 2010
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इस ब्लॉग पर प्रकाशित सभी रचनाएं स्वरचित हैं तथा प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं यथा राजस्थान पत्रिका ,मधुमती , दैनिक जागरण आदि व इ-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं . सर्वाधिकार लेखिकाधीन सुरक्षित हैं
आजकल के समय को सुंदरता से दर्शाती रचना ...
ReplyDeleteसही बात कहती रचना.
ReplyDeleteसादर
बहुत सटीक लेखन ... अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteआज के हालातों पर सटीक लेखन.
ReplyDeleteaaj ka samsaamyik lekhan.
ReplyDeletekripya is blog par aaye.
http://anamika7577.blogspot.com/2011/07/blog-post_13.html
हर सपना नीलम हुआ है / जब गिद्धों को सौंपा शासन /
ReplyDeleteसांसों पर तो चील झपट है / हैं खाली प्राणों के बासन..
अक्षरशः सत्य एवं सटीक...
हुआ गुमशुदा फागुन अबके
भटक गया है रास्ता सावन..
इन पंक्तियों ने तो मन मोह लिया. भाव और भाषा दोनों का सौंदर्य एक से बढ़ कर एक