Sunday, June 20, 2010

गिद्ध शासन

हर सपना नीलाम हुआ है
जब गिद्धों को सौंपा शासन
साँसों पर तो चील झपट है
हैं खाली प्राणों के बासन

आज़ादी की सुबह में घोला
अंधियारी रातों का काजल
मन में अपने झांक सके ना
कहते मैला जग का आँचल

कैसे कोई सलीब उठाये
बुढ़ा रहा यूँ ही यौवन
खून से लथपथ हर काया के
नज़दीक सियारों के आसन

तिनके तिनके सपन जुटाए
आयेंगे मौसम मनभावन
हुआ गुमशुदा फागुन अबके
भटक गया है रस्ता सावन

अंधेरों में साए पराये
आसकिरण भी भूली आँगन
कोई सीता किसे पुकारे
जटायु पर भारी अब भी रावण

6 comments:

  1. आजकल के समय को सुंदरता से दर्शाती रचना ...

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  2. सही बात कहती रचना.

    सादर

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  3. बहुत सटीक लेखन ... अच्छी प्रस्तुति

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  4. आज के हालातों पर सटीक लेखन.

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  5. aaj ka samsaamyik lekhan.

    kripya is blog par aaye.

    http://anamika7577.blogspot.com/2011/07/blog-post_13.html

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  6. हर सपना नीलम हुआ है / जब गिद्धों को सौंपा शासन /

    सांसों पर तो चील झपट है / हैं खाली प्राणों के बासन..

    अक्षरशः सत्य एवं सटीक...


    हुआ गुमशुदा फागुन अबके

    भटक गया है रास्ता सावन..

    इन पंक्तियों ने तो मन मोह लिया. भाव और भाषा दोनों का सौंदर्य एक से बढ़ कर एक

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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