काश मुखर होती इतनी मेरी पीर
बिन बोले भी जुबां कहलाती कबीर
मर जाने के बाद बनती थी मज़ार
लाशों पर होती अब महलों की ताबीर
सूरज भी अब तो रहा नहीं बेदाग़
जब अंधियारे बन बैठे हैं वजीर
जाए मंदिर में पूजा या ठोकर खाए
हर पत्थर की होती अपनी ही तकदीर
बगुला भगतों के बीच होना है चुनाव
लोकतंत्र का मतलब अँधेरे का तीर
गुरूर जिनको कि हमारा जिंदा है ज़मीर
स्वाभिमान की चौखट ताउम्र रहें फकीर
बिन बोले भी जुबां कहलाती कबीर
मर जाने के बाद बनती थी मज़ार
लाशों पर होती अब महलों की ताबीर
सूरज भी अब तो रहा नहीं बेदाग़
जब अंधियारे बन बैठे हैं वजीर
जाए मंदिर में पूजा या ठोकर खाए
हर पत्थर की होती अपनी ही तकदीर
बगुला भगतों के बीच होना है चुनाव
लोकतंत्र का मतलब अँधेरे का तीर
गुरूर जिनको कि हमारा जिंदा है ज़मीर
स्वाभिमान की चौखट ताउम्र रहें फकीर
bahut sundar...
ReplyDeleteGahri baat kahi hai is Gzal ki maadhyam se ...
ReplyDeleteमेरि तरफ से मुबारकबादी क़ुबूल किजिये.
ReplyDelete