स्वस्थ परम्पराएं
तराशती हैं
परिवार
ठीक वैसे ही
जैसे बेतरतीब
किसी जंगल को
सांचे में ढालकर
दे दिया जाता है
रूप सुन्दर बगीचे का
परम्पराएं
होती हैं पोषित
देश और काल के
अनुशासन में
निरंतर
निरंतर
समष्टि के चिन्तन से
बांधती हैं
मर्यादित किनारे स्वच्छंद नद नालों के
और
और
बचा ले जाती है
क्षीण होने से
किसी धारा को
तभी तो
शिव कही जाती हैं
परम्पराएं !!!
अक्षरशः सत्य. हर युग में उन अनुशासन निर्माण करने वालों पर बहुत निर्भर करता है कि क्या दिशा दे के जाते हैं. नहीं तो अफगानिस्तान में पालन किये जाने वाले कुछ अमानवीय नियमों के तरह की विकृतियाँ आ जाती हैं समाज में.
ReplyDeleteसधे शब्दों में प्रस्तुत सुंदर विचार
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर लेखन |
ReplyDeleteनमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (13-10-2013) के चर्चामंच - 1397 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति...!
ReplyDeleteनवरात्रि की शुभकामनाएँ ...!
RECENT POST : अपनी राम कहानी में.
बहुत सुन्दर। हर परिवार एक परम्परा से पोषित है उसी का आगे संवर्धन करता चलता है। परम्परा ही पहचान है। आई डी है।
ReplyDeleteसच कहा आपने
ReplyDeleteआपको सपरिवार विजय दशमी की हार्दिक शुभ कामनाएँ।
सादर
सर्वप्रथम तो आपको दशहरे की हार्दिक शुभकामनायें ..एक सुंदर सन्देश को समाहित किये शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : रावण जलता नहीं
नई पोस्ट : प्रिय प्रवासी बिसरा गया
विजयादशमी की शुभकामनाएँ .
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteअभी अभी महिषासुर बध (भाग -१ )!
अप्रतिम..माँ के विशेष कृपा सदा बनी रहे..
ReplyDeleteपरम्पराओं में पहचान छुपी होती है ... समाज की इन्सान की ... जरूरी है इन्हें जीवित रखना ...
ReplyDeleteपरम्पराएं अतीत के आर्इने हैं, वर्तमान के पाथेय हैं और भविष्य के निर्देशक हैं।
ReplyDeleteप्रभावी रचना।