Friday, March 6, 2015

बासंती खुरचन

रंग पलाशी भीनी पुलकन
चलो चुगें बासंती खुरचन

कुछ फगुनाई कुछ अकुलाई
गालों पर चटकी अरुणाई
झाँक झरोखे से मुस्काई
ओट ओढ़नी की शरमाई
उषा किरण सी प्यारी दुल्हन

गुल गुलाल से अंग महकते
फाग रागिनी सभी बहकते
ढोल बाँसुरी चंग चहकते
बूढ़े बच्चे चलें ठुमकते
मन उपवन सब नंदन नंदन 

मधुर मधुर मिश्री की डलियां
फागुन की अल्हड़ कनबतियां
रागरंग में डूबी सखियाँ
मस्त मस्त हैं मधुकर कलियाँ
आज न आड़े कोई अडचन



7 comments:

  1. सुंदर अभिव्यक्ति...बासंती रंग में रंगी एक अच्छी रचना...

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  2. बहुत सुंदर अभिव्‍यक्ति...।

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  3. शानदार भावसंयोजन , बढ़िया है आपको बहुत बधाई

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  4. मधुर मधुर मिश्री की डलियां
    फागुन की अल्हड़ कनबतियां
    रागरंग में डूबी सखियाँ
    मस्त मस्त हैं मधुकर कलियाँ
    आज न आड़े कोई अडचन ..
    फागुन की खुशियाँ यूँ ही बिखेर दीं आपने शब्दों के जरिये ...
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...

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  5. बहुत ही प्यारी ध्वनि आ रही इस कविता से.

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  6. .बासंती रंग में रंगी रचना...

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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