स्वरचित रचनाएं..... भाव सजाऊं तो छंद रूठ जाते हैं छंद मनाऊं तो भाव छूट जाते हैं यूँ अनगढ़ अनुभव कहते सुनते अल्हड झरने फूट जाते हैं -वन्दना
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Monday, January 26, 2015
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इस ब्लॉग पर प्रकाशित सभी रचनाएं स्वरचित हैं तथा प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं यथा राजस्थान पत्रिका ,मधुमती , दैनिक जागरण आदि व इ-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं . सर्वाधिकार लेखिकाधीन सुरक्षित हैं
वाह .. कितनी सुन्दर बात और कितनी सच ... फांसला भी है जरूरी हो भले अनुराग ...
ReplyDeleteबधाई गणतंत्र दिवस की ...
भाव और गेयता के साथ सुंदर शब्द संयोजन ..बधाई
ReplyDeleteफासले भी हैं जरूरी हो भले अनुराग
ReplyDeleteसत्य भी है और सुंदर, आपकी रचना।
मंत्र मुग्ध हुआ मन उस फासले को अनुभव कर..
ReplyDeleteduriyan,najdikiyan banti hai...sundar ahsas
ReplyDeleteफासले भी जरूरी है। बहुत ही सुंदर रचना प्रस्तुत की है आपने।
ReplyDeleteयह तो ज्ञान की बात है.
ReplyDeleteसुंदर शब्द संयोजन
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