नूर ऐसा कि ये
जज्बात छिपाये न बने
आग उल्फ़त की है दामन
को बचाये न बने
इस कदर भींत उठी
गर्व की रफ्ता रफ्ता
अब तो ये हाल कि
दीवार गिराये न बने
फेरकर बैठ गए पीठ
ख़ुशी रूठ गयी
क्या बने बात जहाँ
बात बनाये न बने
तोड़ डाले हैं अगर
बाँध नदी ने दुःख में
प्रश्न फिर उसकी
बगावत पे उठाये न बने
आज इस दौर में
जज्बात कहाँ ढूंढें हम
इश्तिहारों से पता
लाख लगाये न बने
खो गए शख्स कई उम्र
बिता यूँ कहकर
बेरुखी सिर तो नई
नस्ल की चढ़ाये न बने
तिफ़्ल समझो न खुदाया
कि उड़ाने हैं गज़ब
सिर्फ पानी में ही
अब चाँद दिखाये न बने
राख के ढेर छुपी हो
कोई चिंगारी भी
उफ़ हवा दे न सके और
बुझाये न बने
देहरी आज नया दीप
जलाकर रख दो
काँपती लौ के
चिरागों को जलाए न बने
( तिफ़्ल =बच्चा )
("क्या बने बात जहाँ बात बनाये न बने" तरही मिसरा-मिर्ज़ा ग़ालिब साहब की ग़ज़ल से )
( तिफ़्ल =बच्चा )
("क्या बने बात जहाँ बात बनाये न बने" तरही मिसरा-मिर्ज़ा ग़ालिब साहब की ग़ज़ल से )
उम्दा गजल
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
क्या बने बात जहाँ बात बनाए न बने......
ReplyDeleteवाह वाह...
बहुत बढ़िया ग़ज़ल....
अनु
वाह ...हर बात वज़नदार ढंग से कही
ReplyDeleteबहुत उम्दा गज़ल
ReplyDeleteवाह लाजवाब गजल..
ReplyDeleteबहुत तारीफ़ करने को दिल चाहे पर
ReplyDeleteशब्दों से उतनी तारीफ़ कराये न बने..
खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर गजल ,,,बधाई ...
ReplyDeleteRECENT POST : समझ में आया बापू .
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteभई वाह ...
ReplyDeleteआनंद आया , गज़ब की रचना !!
बधाई !
बहुत सुंदर गज़ल
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब रही ये तरही गज़ल ...
ReplyDeleteहर शेर उम्दा है ...
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल....
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत गज़ल...
ReplyDeletewaah bhai lajavaab prastuti .....kalam ki takat hi kuchh aisee hoti hai ...
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल..ढेर सारी बधाईयों ..सादर
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल..ढेर सारी बधाईयों ..सादर
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