Friday, August 30, 2013

बाड़े


बहुत बरस पहले एक राजा था एक रात उसने एक सपना देखा कि सूरज भरी दोपहर में अपना सुनहरा पीला रंग छोड़ कर लाल हो रहा था एकदम सुर्ख लाल|  राजा अनजाने भय से काँप उठा  सुबह उसने अपनी बिरादरी के लोगों से इस सपने का जिक्र किया पता लगा उन्होंने भी ऐसा ही सपना देखा है |  
मंत्रियों पंडितों से विचार विमर्श कर पाया कि यह किसी परिवर्तन का संकेत है|  
ओह !तब तो जल्द ही कुछ सोचना होगा राजा परेशान हो उठा  | सलाह मशविरा किया तो पता लगा राज्य में कुछ लोगों का जीवन स्तर सामान्य से कहीं बहुत नीचा है इतना कि उन लोगों साँसलेने के लिए भी हवा बहुत कम रहती है इसीलिये गर्मी बढ़ रही है और उनकी गर्म साँसे सूरज को तपाने लगी हैं |  
राजा ने फैसला किया कि उन लोगों को थोड़ी खुली जगह व सुविधाएँ दी जाएँ तो वे लोग भी सामान्य रूप से साँस ले सकेंगे और सूरज को लाल होने से रोका जा सकेगा |
ऐसा ही किया गया और एक बाड़ा बना दिया गया  बाड़े के लोगों को साँस लेने की जगह तो मिल गयी पर मुख्य सड़क पर आने के लिए उनसे पहचान की मांग की जाने लगी और पहचान के रूप में बैसाखी लेकर चलना अनिवार्य कर दिया गया |
उधर जो लोग बाड़े से बाहर सामान्य जीवन जी रहे थे उन्हें लगा कि बाड़े वालों को अधिक महत्व मिल रहा है तो उन्होंने भी राजा से बाड़े में जाने की मांग की  | वे भी बैसाखियाँ लेकर चलने को तैयार थे |  राजा के मन में सपने का भय अब भी था  | इन लोगों को वह पुराने में तो नहीं भेज सकता था इसलिए एक नया बाड़ा बना दिया गया |  बाड़ों की सुविधाओं का प्रचार जोरों पर था अत: साल दर साल नए नए बाड़ों की मांग बढती रही |  बाड़े बनते रहे और नए नामकरण होते रहे नवीनतम बाड़े का नाम बी.पी.एल. रखा गया था |  सब्सिडी ज्यादा थी या नहीं लेकिन सुविधा संपन्न लोग भी इस बाड़े की तरफ अपना साजो सामान उठाये भाग रहे थे और राजा के महल में तरक्की की शहनाई को फेफड़े भर हवा मिल रही थी  |
सूरज लाल तो था पर गर्म नहीं शायद रात आने को थी  |


16 comments:

  1. करारा चांटा
    सार्थक सामयिक आलेख

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  2. सच यही है कि इन कथित बाडों का लाभ समर्थ और सम्पन्न लोग ही अधिक ले रहे हैं और लेते रहेंगे । जरूरतमन्द लोग तो कतारों में खडे हैं और खडे रहेंगे । बढिया व्यंग्य ।

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  3. जब तक सुख सुविधा पाने का लालच रहेगा कोई बैसाखी नहीं छोड़ेगा ... सब लाइन में लगे हैं और यहाँ तक कि लाइन तोड़ कर आगे आने को तैयार हैं ।

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  4. कल 01/09/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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  5. राजा की करनी से सूरज भी लज्जित हो गया किंतु राजा को लाज नहीं आई !

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  6. इस रचना के लिए तो दिल से तारीफ निकल रही है ..कमाल की रचना आनंद आ गया ..हार्दिक बढ़ाई

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  7. वाह...बहुत ही बढ़िया कहानी....बेहद सार्थक...
    दिल से बधाई वंदना..
    अनु

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  8. जरूरतमंद तो बहुत पहले ही गाड़ दिए गए हैं इन्ही बाड़ों में ...

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  9. सुन्दर ,सरल और प्रभाबशाली रचना। बधाई।
    कभी यहाँ भी पधारें।
    सादर मदन
    http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
    http://saxenamadanmohan.blogspot.in/

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  10. फिर कोई अपने आदमियत का दावा क्यों करता है ?

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  11. “अजेय-असीम" -
    सार्थक लेखन !समसामयिक बातो कों समेटे |

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  12. सत्ता ओर आम जनता के बीच की कहानी

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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