मणि तारक ले गोद में
, सबमें बांटे आश
रहता थामे पोटली ,
वो बूढा आकाश
धरणी तो यह पल रही
तेरे अंक विशाल
प्रलय राग तू क्यूँ रचे सृजन हेतु दिक्पाल
मनों आकाश पितृ सम
हरे धरा संताप
देख पीड़ा बरस गया
खोकर धीरज आप
तृष्णा पीछे भागते
सुने न मन का शोर
कैसे सोयी रात थी
कैसे जागी भोर
प्रकृति के सम्मान
पर चोट करे सायास
कैसा तेरा रुदन था
कैसा तेरा हास
सप्तरंग मिलकर
करें जीवन सुधा प्रकाश
ऐसे रंग न बांटिये जो
नित करें हताश
शिव है लय की साधना
शिव प्रलय का रूप
शिव कला की छांव हैं
शिव ही मंगल धूप
सभी दोहे उत्कृष्ट हैं ।
ReplyDeleteउत्कृष्ट दोहे ,उम्दा लेखन !
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर दोहे प्रस्तुति !
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बहुत खूब,सुंदर भावपूर्ण दोहे !
ReplyDeleteRECENT POST : हल निकलेगा
बहुत खूब,सुंदर भावपूर्ण दोहे !
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सुन्दर दोहे.
ReplyDeleteअहा! अति सुन्दर दोहे है और भाव तो उत्कृष्ट हैं ही..
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी दोहे
ReplyDeleteप्राकृति ओर मन को बांधते सुन्दर दोहे ... सार्थक ...
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