स्वरचित रचनाएं..... भाव सजाऊं तो छंद रूठ जाते हैं छंद मनाऊं तो भाव छूट जाते हैं यूँ अनगढ़ अनुभव कहते सुनते अल्हड झरने फूट जाते हैं -वन्दना
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Sunday, June 24, 2012
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इस ब्लॉग पर प्रकाशित सभी रचनाएं स्वरचित हैं तथा प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं यथा राजस्थान पत्रिका ,मधुमती , दैनिक जागरण आदि व इ-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं . सर्वाधिकार लेखिकाधीन सुरक्षित हैं
अति सुंदर ....मन की आकांक्षाओं का सरल, प्रेमपगा चित्रण.....
ReplyDeleteसुन्दर...
ReplyDeleteअति सुन्दर वंदना जी....
अनु
बहुत ही सुंदर रचना लगी, वंदना जी,,,,
ReplyDeleteRECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,
behtarin
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteएह्सांसों को स्वर देती रचना
ReplyDeleteसुन्दर मनमोहक रचना..
ReplyDeleteसुन्दर मनोहारी रचना...
ReplyDeleteसादर.
बहुत सुन्दर मनमोहक रचना...वंदना जी..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना.. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteमन मृगतृष्णा हुई बावरी
ReplyDeleteपनघट ताल तलैया रीते
सुंदर-मोहक गीत।
वाह! कमाल की प्रस्तुति है,वंदना जी.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपके आने का आभारी हूँ मैं.
bahut sundar prastuti-
ReplyDeleteprem pale peepal kii chhaiyaan
koee esaa birvaa seenche.
yeh panktiya man ko chhu gaeen.badhai.
काफी सुंदर एवं मनमोहक रचना वंदना जी !
ReplyDeleteबधाई !
साभार !!
जब तक मैं इस लाजवाब रचना तक पहुंचा ... बरखा रानी तो आ ही गयी ... लाजवाब रचना है ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर .....
ReplyDeleteआप की कलम की ये अलग सी छवि अपनी अलग पहचान बनाती है ....
वाह ... बहुत ही बढिया।
ReplyDeleteसुन्दर कृति मन के गहरे पहुँचे ऐसे
ReplyDeleteप्रेम का बिरवा अभी कोई सींचे जैसे ...
वन्दना जी , बहुत सुन्दर लिखती हैं आप..
क्या कहने
ReplyDeleteप्रेम पले पीपल की छैंया
ReplyDeleteकोई ऐसा बिरबा सींचे
गोद कृष्ण की सिरहाना हो
पड़े रहें बस आँखें मीचे....
कोमल रेशमी भावों में प्रेम पगी कविता....
bahut hi sundar likha hai ...tajjub hai pahle kyon nahin padha ...?
ReplyDeletekhair ...der aaye durust aaye ...!!:))
sunder rachna
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