Sunday, June 24, 2012

दिन मनचीते


सावन सिंचित फागुन भीगे
कब दिन आयेंगे मनचीते 

मन मृगतृष्णा हुई बावरी
पनघट ताल सरोवर रीते

धेनु वेणु बिन हे सांवरिया
कहो राधिका किस पर रीझे


मन के गहरे पहुंचे कैसे
ऊंची इन गलियन दहलीजें

प्रेम पले पीपल की छैंया
कोई ऐसा बिरवा सींचे


22 comments:

  1. अति सुंदर ....मन की आकांक्षाओं का सरल, प्रेमपगा चित्रण.....

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  2. सुन्दर...
    अति सुन्दर वंदना जी....

    अनु

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  3. एह्सांसों को स्वर देती रचना

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  4. सुन्दर मनमोहक रचना..

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  5. सुन्दर मनोहारी रचना...
    सादर.

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  6. बहुत सुन्दर मनमोहक रचना...वंदना जी..

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  7. बहुत ही सुन्दर रचना.. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  8. मन मृगतृष्णा हुई बावरी
    पनघट ताल तलैया रीते

    सुंदर-मोहक गीत।

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  9. वाह! कमाल की प्रस्तुति है,वंदना जी.
    मेरे ब्लॉग पर आपके आने का आभारी हूँ मैं.

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  10. bahut sundar prastuti-
    prem pale peepal kii chhaiyaan
    koee esaa birvaa seenche.

    yeh panktiya man ko chhu gaeen.badhai.

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  11. काफी सुंदर एवं मनमोहक रचना वंदना जी !
    बधाई !
    साभार !!

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  12. जब तक मैं इस लाजवाब रचना तक पहुंचा ... बरखा रानी तो आ ही गयी ... लाजवाब रचना है ...

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  13. बहुत सुंदर .....
    आप की कलम की ये अलग सी छवि अपनी अलग पहचान बनाती है ....

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  14. वाह ... बहुत ही बढिया।

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  15. सुन्दर कृति मन के गहरे पहुँचे ऐसे
    प्रेम का बिरवा अभी कोई सींचे जैसे ...
    वन्दना जी , बहुत सुन्दर लिखती हैं आप..

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  16. प्रेम पले पीपल की छैंया
    कोई ऐसा बिरबा सींचे
    गोद कृष्ण की सिरहाना हो
    पड़े रहें बस आँखें मीचे....

    कोमल रेशमी भावों में प्रेम पगी कविता....

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  17. bahut hi sundar likha hai ...tajjub hai pahle kyon nahin padha ...?
    khair ...der aaye durust aaye ...!!:))

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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