नींदें
जब
बही-खाते खोल
कर
बैठ जाएँ
तो न जाने
कौन
कौन से हिसाब
उलझ जाते हैं
कहीं
बदगुमानियों के
कहीं आइनों पर
आत्ममुग्ध अजगरों के
सूरज
जैसे
बारिश के बाद
मुंह धो कर लौट
आना चाहता है
और गर्द
फिर से उसे
छूकर
मैला कर देती है
मन का कोई
ज्वार
इन बहियों को
बहा कर
ले जा
पाता नहीं
उतरते ज्वार के बाद भी
बचे रह जाते हैं
अनगिन हिसाब
आकर्षक शंख सीपियाँ
नहीं
मोती भी नहीं
रह जाते हैं बस
रेत पर कुछ
निशान
कुछ गहरे कुछ
हलके
संशय के
अवचेतना के
अवचेतना के
क्या विचारों के उस छोर
है कहीं कोई द्वार
है कहीं कोई द्वार
आस्था का
चेतना या विश्वास का
क्या द्वार के
पार
बहती होगी कोई
नदी
पत्थरों को
शिवाकार बनाती
हुई
तो चलो ...
चित्र गूगल से साभार
वाह.....
ReplyDeleteअद्भुत.......
अनु
बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteबहुत सुंदर ....
ReplyDeleteगहरी अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रभावी अभिव्यक्ति के लिये बधाई वन्दना जी,,,
ReplyDelete.....RECENT POST - मेरे सपनो का भारत
Bahut sundar vandna ji........
ReplyDeletehttp://vyakhyaa.blogspot.in/2012/09/blog-post_12.html
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteसच है .. जब नींद नहीं आती .. दुनिया भर की बातें मन में आ जाती हैं ... मन सोचते सोचते कहाँ से कहाँ पहुँच जाता है ...
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति ...
bahut khub
ReplyDeleteअनुपम आभा लिये सुन्दर अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteनदी जमकर बर्फ हो गई,आओ इसे पिघला दें अपने संबंधों की ऊष्मा से और उतार दें नाव फिर एक शुरुआत के लिए
ReplyDeleteआकर्षक शंख सीपियां नहीँ
ReplyDeleteमोती भी नहीँ
रह जाते हैँ बस
रेत पर कुछ निशान
कुछ गहरे कुछ हल्के
बहुत सुन्दर, भावपूर्ण अभिव्यक्ति....।
बहुत ही प्यारी रचना ....
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति {
ReplyDeleteआशा
बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeletebahut sundar abhivyakti hai ..
ReplyDeletechetana pradan karti huii ...
shubhkamnayen ..!!
नींद सदा से वही दिखाती आई है जिससे हम बच के भागना चाहते हैं.सरल शब्दों में ह्रदय की गहराई में उतरने वाली पंक्तियाँ. भई वाह.............
ReplyDeleteवाह !!!!!!!! अद्भुत अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteगजब!!
ReplyDeleteऊँ नम: शिवाय
ReplyDeleteचलिये नदी तक चलें.
सुन्दर गहन प्रस्तुति.
मौलिक सोच को प्रदर्शित करती प्रशंसनीय कविता।
ReplyDeleteनींदें
ReplyDeleteजब
बही-खाते खोलकर
बैठ जायें
तो न जाने
कौन-कौन से हिसाब
उलझ जाते हैं।
क्या कहने सुंदर अभिव्यक्ति ।
सुन्दर .
ReplyDeletegood one.
ReplyDeletegood one
ReplyDeleteवंदना जी बहुत सुंदर कविता. कुछ पंक्तियाँ तो एक दम अदभुत हैं. बहुत बधाई.
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