नवकोंपलों के स्वागत में
देह भर उत्साह से उमगते
कण-कण को वासन्तिक बनाने में
प्राणवायु उलीचते
कर्तव्य हवन में
स्वयं समिधा बन
जो पाया उसे लौटाते
पात-पात तिनका-तिनका
'इदं न मम' कहकर
आहुति देते
देव ,ऋषि
और पितृ ऋण से
मुक्त होना सिखलाते
ये वृक्ष पूछा करते हैं
कि ऋणानुबंधों की
सुनहरी लिखावट की
स्याही में डूबे
क्या कभी आया करते हैं
अच्छे दिन !
चित्र गूगल से साभार
चित्र गूगल से साभार
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteतमन्ना इंसान की ......
सुन्दर, सहज और सार्थक प्रश्न...बहुत ख़ूब
ReplyDeleteसार्थक प्रशन ... इंसान की चेतना जब तक नहीं जागेगी शायद आचे दिन आ ही नहीं पायेंगे ...
ReplyDeletesarthak abhiwyakti...
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