बारूद कहीं फैला लाज़िम ही फ़िज़ाओं में
दिखने लगी बैचैनी अब नन्हीं बयाओं में
जब कुछ न असर दिखता दुनिया की दवाओं में
मन ढूँढने लगता है दादी को खलाओं में
क्यूँ ढूंढते कमजोरी तुम उनकी अदाओं में
क्या जीने की सद-इच्छा दिखती न लताओं में
यायावरी की अल्हड इक ज़िद लिए बच्चे सी
"ये चाँद बहुत भटका सावन की घटाओं में"
रोशन जहाँ के हाकिम भरना तू मेरी झोली
हाँ नामशुमारी है अपनी भी गदाओं में
वो बाँटता था सुख दुःख सौ हाथ मदद लेकर
यूँ ही नहीं थी गिनती कान्हा की सखाओं में
उम्मीद मेरे दिल की है तुझसे ही तो कायम
साहस को नवाजेगा तू अपनी अताओं में
तरही मिसरा "ये चाँद बहुत भटका सावन की घटाओं में "शायर जनाब बशीर बद्र साहब की ग़ज़ल से
तरही मिसरा "ये चाँद बहुत भटका सावन की घटाओं में "शायर जनाब बशीर बद्र साहब की ग़ज़ल से
उत्तम प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन ग़ज़ल हुई है ..हर शेर नायाब...नए साल की हार्दिक शुभकामनाएँ..
ReplyDeleteजब कुछ न असर दिखता दुनिया की दवाओं में
ReplyDeleteमन ढूँढने लगता है दादी को खलाओं में
लाजवाब शेर हैं यह, ग़ज़ल बहुत पसंद आई.
जब कुछ न असर दिखता दुनिया की दवाओं में
ReplyDeleteमन ढूँढने लगता है दादी को खलाओं में
हर शेर लाजवाब ... और ये शेर तो ख़ास लगा ...
नव वर्ष की मंगल कामनाएं ...
बेजोड़ पंक्तियाँ
ReplyDeleteबहूत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeletebehatareen ghazal. mubarak.
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