सर्दियों की कुनकुनी धूप का आनन्द लेने मैं छत पर पहुंची तो पास की
छतों पर बच्चे पतंग उड़ाने में व्यस्त थे कुछ दूर से किसी चुनावी सभा की धीमी-धीमी सी आवाज आ रही थी वहीँ चटाई पर अपने
क़ागज फैलाये बिटिया मिनी नशा-मुक्ति सम्बन्धी पोस्टर तैयार करने में लगी थी |
पोस्टर कुछ इस तरह उभर रहा था –सिगरेट के चित्र के पास मानव कंकाल ...
सिगरेट रूप में बनी अर्थी ..शराब की बोतल के पास स्वास्थ्य सम्बन्धी चेतावनी और
आस-पास कुछ समाचारपत्रों की कतरनें ...जहरीली शराब पीने से बीस मरे .....| आगे एक
खबर पर नज़र ठहर गयी जिसमें लिखा था कि फ़ैजाबाद में मेथेनोल के टैंकर से रिसते द्रव
को लोगों ने शराब समझ कर पिया इसकी वजह से दस मरे और तीस को अस्पताल में भर्ती
किया | टैंकर पर चेतावनी लिखी होने के
बावजूद उक्त हादसा हुआ | विपक्षी नेता सांत्वना देने पहुंचे और प्रशासन की गलती
बताते हुए मृतकों के परिवारों के लिए पांच
–पांच लाख रूपये मुआवज़े की मांग की गयी
...|
पढ़ते ही कौंध गयी कुछ घटनाएं .. बंद रेलवे फ़ाटक पर रेलवे-लाइन पार करता युवक कट कर मरा ... मुआवज़े की मांग
.... रात को बिजली के तार पर तार डालता हुआ युवक करंट लगने से घायल ..प्रशासन से
मुआवज़े की मांग |
तभी पार्क से आती आवाज़ कुछ तेज हो गयी थी नेता जी कह रहे थे कि बिजली
पानी की समुचित व्यवस्था न कर पाने के लिए यह परशासन ही दोषी है सड़कों पर अतिक्रमण के लिए भी परशासन
ही दोषी है सरकार को चाहिए .......|
मेरा मन प्रशासन बनाम पर-शासन की खींचतान में उलझा था |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.सबकुछ प्रशासन के बरोसे छोड़ देना ठीक नहीं.अपने दायित्व को भी समझना चाहिए.
ReplyDeleteनई पोस्ट : रात बीता हुआ सवेरा है
नई पोस्ट : पीता हूं धो के खुसरबे – शीरीं सखुन के पांव
हर बात में प्रशासन का दोष न भी हो तो भी उनका दोष जरूर है क्योंकि वो इंसेंसिटिव होते जा रहे हैं ... जैसे लोग, नेता और सभी ...
ReplyDeleteसुंदर और सार्थक
ReplyDeletebilkul sahi kaha aapne . ham har chij ke lie sarkar ko hi dosh dete hai yah dekhe bina ki asli galati kiski hai .
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