संसार कैसा मैं भला कुछ ,क्या कहीं थी जानती
घर से अगर निकली अकेली ,दोस्त सबको मानती
हाँ तैरते सपने सितारे ,चाँद आँखों में बसा
यूँ चल पड़ी बस सामने हो जग अनोखा रसमसा
थे पंख कोमल घोंसले से मैं कभी निकली न थी
है छोर दूजा भी गली का जानती पगली न थी
अब चिलचिलाती धूप देखी चीरती मुझको हवा
आकर कहीं से गोद में ले दे मुझे तू ही दवा
माँ ढूँढती होगी विकल तू राह भूली यह कली
थकना नहीं मुमकिन कि जब तक ना मिले नाजो पली
वो लोरियाँ जब गूँजती है दिल समाये मोद है
सबसे सुरक्षित माँ मुझे तब खींचती यह गोद है
(हरिगीतिका छंद )
चित्र नेट से साभार
चित्र नेट से साभार
सुंदर और भावपूर्ण... मन को छू जाती पंक्तियाँ...
ReplyDeleteoh.. umda
ReplyDeleteबेहतरीन ... सुन्दर !!
ReplyDeleteबेहतरीन ....बधाई ....!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर …
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी भाव लिए पंक्तियाँ
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण ...
ReplyDeleteमर्म को छूते हुए शब्द ... माँ की गोद से अधिक सुरक्षित क्या ...
सुन्दर सृजन किया है आपने. मन अंदर तक भींगा.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर …
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी भाव लिए पंक्तियाँ
सबसे सुरक्षित माँ मुझे तब खींचती यह गोद है.
ReplyDeleteबेहतरीन ... सुन्दर !!
वाह सुंदर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति...सुंदर छंद ..दिल को छू गया ....कलम को रौशनी देते रहिएगा...दिली डैड...वसूल पाइयेगा..!!!
ReplyDelete