स्वरचित रचनाएं..... भाव सजाऊं तो छंद रूठ जाते हैं छंद मनाऊं तो भाव छूट जाते हैं यूँ अनगढ़ अनुभव कहते सुनते अल्हड झरने फूट जाते हैं -वन्दना
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Thursday, November 20, 2014
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इस ब्लॉग पर प्रकाशित सभी रचनाएं स्वरचित हैं तथा प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं यथा राजस्थान पत्रिका ,मधुमती , दैनिक जागरण आदि व इ-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं . सर्वाधिकार लेखिकाधीन सुरक्षित हैं
सुन्दर क्षणिकाएं.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (22-11-2014) को "अभिलाषा-कपड़ा माँगने शायद चला आयेगा" (चर्चा मंच 1805) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
खूबसूरत एहसास कराती क्षणिकाएं |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अर्थपूर्ण क्षणिकाएं !
ReplyDeleteआईना !
तितलियों से जुड़े कई मासूम अहसास पुनः ताजा हो गये। सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत ही अर्थपूर्ण हैं दोनों क्षणिकाएं ... गहरा अर्थ लिए ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर , विचारपूर्ण भाव हैं
ReplyDeleteखूबसूरत पंक्तियाँ, अर्थपूर्ण क्षणिकाएं...बधाई
ReplyDeleteवाह....!
ReplyDeleteभावना की सीपी में
शब्दों के मोती
चमक रहे हों, जैसे !
बहुत ही खूबसूरत .....
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