Sunday, February 26, 2012

उमर बुनी अनजाने में




अनगिन गाँठे थी ताने में
अनगिन गाँठे थी बाने में
सफ़ेद हुए स्याह बालों की
यूँ उमर बुनी अनजाने में

अनुभव कुछ थे नीम करेले
और शहद के कुछ थे धारे
कभी पिंजी रुई की नरमी
थी चुभन कभी अफ़साने में

जीवन के वचन निभाए भी
आंधी मे दिए जलाए भी
डेरा अपना बंजारे सा
भटके दर दर वीराने में

सांस सांस गिन उलटी गिनती
तेरे दामन से क्या चुनती
खोल रहस्य जिंदगी अब तू
लाई थी क्या नजराने मे

जब  जब पीड़ा घन घिरता है
दिल मे आग लिये फिरता है
एक कहानी उमस घुटन की
युग बीत गए समझाने मे 

15 comments:

  1. बिल्कुल सही कहा।

    ReplyDelete
  2. लेखन का जादू..
    यर्थाथ का चित्रण। सादर।

    ReplyDelete
  3. गहरे भाव .... उत्कृष्ट पंक्तियाँ - वाह !!!

    ReplyDelete
  4. जिन्दगी का अनजाना रहस्य बंजारा ही बना देता है . सुन्दर काव्यात्मक भावो में खींचती हुई लेखनी...

    ReplyDelete
  5. bahut hi pyaari rachna,acha lga padh kar

    ReplyDelete
  6. सार्थक रचना...मन में घर करने वाली|

    ReplyDelete
  7. बहुत बढ़िया सराहनीय प्रस्तुति,सार्थक सुंदर रचना के लिए वंदना जी बहुत२ बधाई.... .
    फालोवर बन बन रहाहूँ ......

    NEW POST काव्यान्जलि ...: चिंगारी...

    ReplyDelete
  8. मर्मस्पर्शी..... आखिरी पंक्तियाँ गहरे उतरती हैं....

    ReplyDelete
  9. bich vala antra bahut pyara laga ..sundar ati sundar bhaav or bunaai dono hi behatriin

    ReplyDelete
  10. bahut hi sundar rachana ....sadar badhai

    ReplyDelete
  11. जीवन के अनुभवों को नीम, करेले और शहद से तुलना करना भा गया।
    होली की बधाइयां एवं शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  12. सुन्दर कविता |होली की शुभकामनायें

    ReplyDelete

आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

Followers

कॉपी राईट

इस ब्लॉग पर प्रकाशित सभी रचनाएं स्वरचित हैं तथा प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं यथा राजस्थान पत्रिका ,मधुमती , दैनिक जागरण आदि व इ-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं . सर्वाधिकार लेखिकाधीन सुरक्षित हैं