अनगिन गाँठे थी ताने में
अनगिन गाँठे थी बाने में
सफ़ेद हुए स्याह बालों की
यूँ उमर बुनी अनजाने में
अनुभव कुछ थे नीम करेले
और शहद के कुछ थे धारे
कभी पिंजी रुई की नरमी
थी चुभन कभी अफ़साने में
जीवन के वचन निभाए भी
आंधी मे दिए जलाए भी
डेरा अपना बंजारे सा
भटके दर दर वीराने में
सांस सांस गिन उलटी गिनती
तेरे दामन से क्या चुनती
खोल रहस्य जिंदगी अब तू
लाई थी क्या नजराने मे
जब जब पीड़ा घन घिरता है
दिल मे आग लिये फिरता है
एक कहानी उमस घुटन की
युग बीत गए समझाने मे
बिल्कुल सही कहा।
ReplyDeletebahut sahi ...
ReplyDeleteacchi rachna...
ReplyDeleteलेखन का जादू..
ReplyDeleteयर्थाथ का चित्रण। सादर।
गहरे भाव .... उत्कृष्ट पंक्तियाँ - वाह !!!
ReplyDeleteजिन्दगी का अनजाना रहस्य बंजारा ही बना देता है . सुन्दर काव्यात्मक भावो में खींचती हुई लेखनी...
ReplyDeletebahut hi pyaari rachna,acha lga padh kar
ReplyDeleteसार्थक रचना...मन में घर करने वाली|
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सराहनीय प्रस्तुति,सार्थक सुंदर रचना के लिए वंदना जी बहुत२ बधाई.... .
ReplyDeleteफालोवर बन बन रहाहूँ ......
NEW POST काव्यान्जलि ...: चिंगारी...
मर्मस्पर्शी..... आखिरी पंक्तियाँ गहरे उतरती हैं....
ReplyDeletebich vala antra bahut pyara laga ..sundar ati sundar bhaav or bunaai dono hi behatriin
ReplyDeleteumda rachna!
ReplyDeletebahut hi sundar rachana ....sadar badhai
ReplyDeleteजीवन के अनुभवों को नीम, करेले और शहद से तुलना करना भा गया।
ReplyDeleteहोली की बधाइयां एवं शुभकामनाएं।
सुन्दर कविता |होली की शुभकामनायें
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