महँगे इत्रों से महकती
लंबी चौड़ी गाड़ियों में
फर्राटे से दौड़ती
कभी गहनों के गुणगान
कभी प्रोपर्टी के गीत
परसों पेरिस से लौटी हूँ
पति अमेरिका में हैं
बेटा लन्दन में सैटल है
बिटिया ऑस्ट्रेलिया में
निऑन बल्बों सी दमकती
सच्चे मीत को तरसती
भरपेट खाकर भी
भूख की कथा सी
ये भी है जिंदगी
शाम ढले
मेहनत के बाद
चूल्हे के चारों ओर
चार प्राणी
समय की चाल
उम्र से पहले
पक गए हैं बाल
सिर्फ दो रोटी ...
आधी आधी बाँट लेंगे
चादर छोटी है तो क्या
आधा तन ढांप लेंगे
प्यार की भीनी महक सी
चाँदनी मद्धिम चाँद की
स्वयं में परितृप्त सी
हाँ यह भी है जिंदगी ....
वाह! बहुत ही अच्छी रचना.
ReplyDeleteतृप्त संतुष्ट ज़िन्दगी जीने को इतना कुछ नहीं चाहिए ..... सच है ..
ReplyDeleteउम्दा रचना
प्यार से संतृप्त जिन्दगी से बढ़कर कुछ नहीं...बहुत ही सुंदर कविता|
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन को मान, रचनाकार को ह्रदय से सम्मान ,सजीवता को परिभाषित करती मुखर अभिव्यक्ति ...
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... प्रशंसनीय रचना - बधाई
ReplyDeletesach mil baat kar rehna hi jindgi hai
ReplyDeleteशायद यही है जिंदगी
ReplyDeleteहर किसी को हर चीज़ नहीं मिलता.. प्यार तो तकदीर वाले को ही मिलता है..बाकी प्यार के ख़याल से खुश हो लेते है..
ReplyDeleteइसी का नाम जिन्दगी है....बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteTHIS IS THE WAVE OF LIFE.
ReplyDeleteBEAUTIFUL LINES
भरपेट खा कर भी
ReplyDeleteभूख की कथा सी...
ये भी है जिंदगी...
बेहद भावपूर्ण रचना वंदना जी...
बधाई.
बहुत ही सुन्दरता से ज़िन्दगी की कड़वाहट और मिठास को गूंथा है ...एक सशक्त रचना
ReplyDeleteह्रदय को छू गयी यह रचना. आपने उस सच्चाई को लिखा है जिसको सब नहीं देख पाते हैं. दुनिया भागती है जिस ज़िन्दगी के पीछे उसके अंदर का खोखलापन सब को दिख नहीं पाता. बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए.
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