पिंजरों में
बंधके कैसे
कोई रह पायेगा
सूरज अगर
बाँध ले किरणों को
जीवन
धरती पर
कहाँ रह जाएगा
मोडना संभव है
धाराओं को
बंधन नदी पर
प्रलय बन जाएगा
खुशबू फूलों में
पवन मुठ्ठी में
रुकी है ना रोक पायेगा
खोल दो खिड़कियाँ
बहने दो हवा
गीत आजाद पाखी गुनगुनायेगा
खोल दो खिड़कियाँ
ReplyDeleteबहने दो हवा
गीत आजाद पाखी गुनगुनायेगा
सार्थक आह्वान .. सुन्दर रचना
खूबसूरत भाव, सुंदर शब्द।
ReplyDeleteazadi ka apna hi mahatwa hai..aaj ham bhi pinjaron me baithe daana kha rahe hain..hamari swachandata khatam ho gayi..saral shabdon me behatrain disha ki taraf ishara karti shandar rachna..sadar badhayee aaur apne blog per aane aaur judne ke amnatran ke sath
ReplyDeleteअंतिम पंक्तियाँ बहुत सुंदर यही मतलब है आज़ादी का क्या बात है .
ReplyDeleteसम्मोहक संवेदनशील काव्य सुन्दर है .शुभकामनायें /
ReplyDeleteखूबसूरत भाव, सुंदर रचना....
ReplyDeletevery nice........keep it up.
ReplyDeleteखूबसूरत भाव.
ReplyDeleteऔर झूम जायेगा कण-कण.... बेहद खुबसूरत...
ReplyDeleteवाह क्या बात है ...बहुत भावपूर्ण रचना.
ReplyDeleteकभी समय मिले तो http://akashsingh307.blogspot.com ब्लॉग पर भी अपने एक नज़र डालें .फोलोवर बनकर उत्सावर्धन करें .. धन्यवाद .