आशा आई खिडकी के रस्ते
या सूरज की परछाई
महक उठी मेहंदी हाथों में
जब याद तुम्हारी आई
सदियों से गुम-सुम बैठी थी
आहट ये किसकी आई
परस गयीं तेरी सासे
या छेड़ गयी पुरवाई
पुलक उठा मन भीगे पत्तों सा
गालों पर अरुणाई
तुम गीत प्रीत का बनकर आये
या गूँज उठी शहनाई
बहुत ही खूबसूरत कविता।
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कल 06/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
behatarin rachana badhayiyan ji .
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही खुबसूरत रचना
ReplyDeleteek khubsoorat kavita
ReplyDeleteaakarshan
अच्छी लगी.शक्ति-स्वरूपा माँ आपमें स्वयं अवस्थित हों .शुभकामनाएं.
ReplyDeleteआशा आई खिडकी के रस्ते
ReplyDeleteया सूरज की परछाई....
वाह! बड़ा सुन्दर बन पडा है गीत..
विजयादशमी की सादर बधाईयाँ...
कोमल भावों को बुनती हुई रचना!
ReplyDeleteविजयादशमी की शुभकामनाएं!
bhaut hi khubsurat...
ReplyDeleteविजयादशमी पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteमेंहदी है रचने वाली,
ReplyDeleteनारनौल की मेंहदी प्रसिद्ध है रचने के लिए
विजयादशमी की बधाई
बहुत सुंदर ...शुभकामनायें
ReplyDeletebhavon se bhari hui rcna.thanks.
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत कविता। .....शुभकामनायें
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