आओ हवाओं की खामोशियाँ सुनें हम,
पत्तों की मानिंद नेह नदी में बहें हम ।
पत्तों की मानिंद नेह नदी में बहें हम ।
बदलते मौसम की कहानी है जिन्दगी,
खट्टे मीठे धागों से ऋतुराज बुने हम ।
खट्टे मीठे धागों से ऋतुराज बुने हम ।
गिनती की साँसें लेकर जीते हैं सभी,
गुमनाम ही सही अफसाना अलग बनें हम ।
गुमनाम ही सही अफसाना अलग बनें हम ।
बहुत दिनों से है बंद कपाट उस घर का,
दस्तक दे खुलवायें मन आवाज सुने हम ।
दस्तक दे खुलवायें मन आवाज सुने हम ।
महक सौंधी सी कैद पुरानी चिट्ठी में,
रिश्ते फिर बनाए फिर से खतूत लिखें हम ।
रिश्ते फिर बनाए फिर से खतूत लिखें हम ।
वाह …………बहुत ही मनमोहक गज़ल्।
ReplyDeleteबेहतरीन गजल!
ReplyDelete-------
कल 19/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
भावों की प्रभावी अभिव्यक्ति .......
ReplyDeletesundar....
ReplyDeletesundar....
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत.....
ReplyDeleteआओ हवाओं की खामोशियाँ सुनें हम,
ReplyDeleteपत्तों की मानिंद नेह नदी में बहें हम ।
....phir aapsi ankahe mein bheeg uthe hum
उम्दा और लाजबाब ..
ReplyDeletebahut pyaari ghazal.
ReplyDeleteप्यारी- प्यारी बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteबहुत प्यारी गज़ल ..खूबसूरत भाव लिए हुए
ReplyDeleteshandaar abhivyakti..badhayee
ReplyDeleteआज 19- 09 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
..खूबसूरत गज़ल
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्दों का संगम ।
ReplyDeleteकोमल और रुपहले भावों से बुनी शब्दों की एक चादर.
ReplyDeletevery nice keep it up.
ReplyDeleteबहुत दिनों से है बंद कपाट उस घर का,
ReplyDeleteदस्तक दे खुलवायें मन आवाज सुने हम
यह है असली शेर बहुत खूब मुबारक हो
vaah acchha likhaa hai aapne....
ReplyDeleteगिनती की साँसें लेकर जीते हैं सभी,
ReplyDeleteगुमनाम ही सही अफसाना अलग बनें हम ।
उम्दा भावों से सजी बढि़या ग़ज़ल।
वंदना जी बहुत ही प्यारी गजल कही है आपने। बधाई स्वीकारें।
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आप चलेंगे इस महाकुंभ में...
...क्या कहती है तबाही?
सुन्दर भाव!
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति.
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