Sunday, September 18, 2011

ग़ज़ल (आओ हवा की खामोशियाँ ....)

आओ हवाओं की खामोशियाँ सुनें हम,
पत्तों की मानिंद नेह नदी में बहें हम ।



बदलते मौसम की कहानी है जिन्दगी,
खट्टे मीठे धागों से ऋतुराज बुने हम ।

गिनती की साँसें लेकर जीते हैं सभी,
गुमनाम ही सही अफसाना अलग बनें हम ।

बहुत दिनों से है बंद कपाट उस घर का,
दस्तक दे खुलवायें मन आवाज सुने हम ।

महक सौंधी सी कैद पुरानी चिट्ठी में,
रिश्ते फिर बनाए फिर से खतूत लिखें हम ।



23 comments:

  1. वाह …………बहुत ही मनमोहक गज़ल्।

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  2. बेहतरीन गजल!
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    कल 19/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  3. भावों की प्रभावी अभिव्यक्ति .......

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  4. आओ हवाओं की खामोशियाँ सुनें हम,
    पत्तों की मानिंद नेह नदी में बहें हम ।
    ....phir aapsi ankahe mein bheeg uthe hum

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  5. उम्दा और लाजबाब ..

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  6. प्यारी- प्यारी बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....

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  7. बहुत प्यारी गज़ल ..खूबसूरत भाव लिए हुए

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  8. बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍दों का संगम ।

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  9. कोमल और रुपहले भावों से बुनी शब्दों की एक चादर.

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  10. very nice keep it up.

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  11. बहुत दिनों से है बंद कपाट उस घर का,
    दस्तक दे खुलवायें मन आवाज सुने हम
    यह है असली शेर बहुत खूब मुबारक हो

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  12. गिनती की साँसें लेकर जीते हैं सभी,
    गुमनाम ही सही अफसाना अलग बनें हम ।

    उम्दा भावों से सजी बढि़या ग़ज़ल।

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  13. वंदना जी बहुत ही प्‍यारी गजल कही है आपने। बधाई स्‍वीकारें।

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    आप चलेंगे इस महाकुंभ में...
    ...क्‍या कहती है तबाही?

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  14. सुन्दर भावाभिव्यक्ति.

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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