Sunday, June 19, 2011

रिश्ता

साथ तेरा मेरा

धूप बारिश सा

यूँ तो अलग है

अस्तित्व दोनों का

किन्तु संग मिल बिखराते

सप्त रंग इन्द्रधनुष के

चाँदनी उंडेलती घडों शीतलता

रवि स्थित प्रज्ञ बन देता है प्रेरणा

किन्तु तुमने भी सराहा

गगन पट सांध्य समय का

हमराह चलते दोराहे पर किसी

राहे जुदा हो सकती हैं हमारी

किन्तु रिश्ता है हमारा

लक्ष्य और शुभेच्छा सा

8 comments:

  1. सुंदर भावाभिव्यक्ति।

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  2. सुन्दर रचना
    अन्यथा न लें तो एक सलाह : फांट थोड़ा छोटा ही रखें

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  3. कसक भरी संवेदना पास भी दूर भी ,सुंदर पलों का साक्ष्य देती अच्छी है , प्रीतिकर प्रयास सराहनीय है ....

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  4. वंदना जी ,
    रिश्तों का महत्त्व बताती एक सार्थक रचना। प्रत्न करने पड़ते हैं रिशों को स्नेहिल और मिठास युक्त बनाये रखने के लिए। इसी में रिश्तों की सार्थकता है। खूबसूरत रचना के लिए बधाई।

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  5. परन्तु रिश्ता है हमारा लक्ष्य और शुभेच्छा सा ।सुन्दर भाव भूमि ."रिश्ता तो मेरा तुमसे केवल दो दिन का, पर सम्बन्ध पुराना है उतना, दूर बसे प्रीतम से जितना पाती का .
    मेरा तुमसे सम्बन्ध पुराना है उतना दीपक से जितना बातीका .
    क्षण भर को तुम गए दूर ,
    लगता था जैसे गए भूल ,
    जाने वाले जाते जैसे, छोड़ पंथ में अपने धूल .
    रिश्ता तो मेरा तुमसे केवल दो दिन का पर सम्बन्ध पुराना है उतना ,
    साहूकार से होता जितना थाती का .
    दीपक से जितना बाती का .

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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