बिना शर्त अनुबंध है इक दुआ मां
तेरा हाथ सिर पर है मेरी दवा मां
झुलसती दुपहरी में राहत दिलाती
फुहारों सी बरसे निराली घटा मां
गमों को छुपाए उठा बोझ अनगिन
भरी धूप में गुनगुनाती सबा मां
पड़े पांव छाले या कांटे हों मग में
कठिन राहों में मुस्कुराती सदा मां
वो त्योहार हर दिन वो मनुहार हर पल
तेरे बिन है छूटा कहीं सिलसिला मां
सितारों से आगे कहीं ठांव तेरा
पहुंच मेरी सीमित कहां रास्ता मां
अकेली तुझे छोड़ की भूल ऐसी
कि जिन्दा हूं पर जिंदगी है सज़ा मां
(आपके जन्म दिवस पर शब्द पुष्पांजलि मां)
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (11-05-2022) को चर्चा मंच "जिंदगी कुछ सिखाती रही उम्र भर" (चर्चा अंक 4427) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बहुत बहुत आभार आदरणीय
Deleteबेहतरीन अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया
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