Sunday, July 29, 2018

ग़ज़ल



हाथों में गुब्बारे थामे शादमां हो जाएँगे।    

खिलखिलाएँगे ये बच्चे तितलियाँ हो जाएँगे

जब तलक जिन्दा जड़ें हैं फुनगियाँ आबाद हैं

वरना रिश्ते रफ्ता-रफ्ता नातवां हो जाएँगे 

रंग सतरंगी समेटे बस जरा सी देर को

हम भी ऐसे बुलबुलों की दास्तां हो जाएँगे

धुन में परवाजों की अपना आशियाँ भूला अगर

‘दूर तुझसे ये जमीन-ओ-आसमां हो जाएँगे’  

आग जुगनू सूर्य दीपक जो हमारा नाम हो

रोशनी सिमटी तो साहब बस धुआं हो जाएँगे

वक़्त की आवाज सुन लो कह रहा बूढा शज़र

छाँव को तरसोगे तुम हम दास्तां हो जाएँगे

पैसों में गर तोलिएगा रिश्तों की मासूमियत

ये यक़ीनन दफ्तर-ए-सूद-ओ-ज़ियां हो जाएँगे



(शादमां- खुश,  नातवां-अशक्त ,   दफ्तर-ए-सूद-ओ-ज़ियां - नफ़ा नुकसान का रजिस्टर )
मिसरा -ए-तरह जनाब वाली आसी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"दूर तुझ से ये ज़मीन-ओ-आसमाँ हो जाएँगे"
2122    2122    2122   212
फाइलातुन   फाइलातुन    फाइलातुन    फाइलुन
(बह्र: रमल मुसम्मन महजूफ़)

13 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (31-07-2018) को "सावन आया रे.... मस्ती लाया रे...." (चर्चा अंक-3049) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय

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  2. बहुत ग़ज़ब के सारे शेर ... हर शेर की कहन अदायगी लाजवाब ... ज़माने की बात कहते हुए ... कमाल की ग़ज़ल ... बधाई ...

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय

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  3. वाह बहुत सुंदर ग़ज़ल कही है मज़ा आ गया जनाब।

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  4. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 1 अगस्त 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. बहुत कमाल के शेर, उम्दा ग़ज़ल

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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