हाथों में गुब्बारे थामे शादमां हो जाएँगे।
खिलखिलाएँगे ये बच्चे तितलियाँ हो जाएँगे
जब तलक जिन्दा जड़ें हैं फुनगियाँ आबाद हैं
वरना रिश्ते रफ्ता-रफ्ता नातवां हो जाएँगे
रंग सतरंगी समेटे बस जरा सी देर को
हम भी ऐसे बुलबुलों की दास्तां हो जाएँगे
धुन में परवाजों की अपना आशियाँ भूला अगर
‘दूर तुझसे ये जमीन-ओ-आसमां हो जाएँगे’
आग जुगनू सूर्य दीपक जो हमारा नाम हो
रोशनी सिमटी तो साहब बस धुआं हो जाएँगे
वक़्त की आवाज सुन लो कह रहा बूढा शज़र
छाँव को तरसोगे तुम हम दास्तां हो जाएँगे
पैसों में गर तोलिएगा रिश्तों की मासूमियत
ये यक़ीनन दफ्तर-ए-सूद-ओ-ज़ियां हो जाएँगे
(शादमां- खुश, नातवां-अशक्त , दफ्तर-ए-सूद-ओ-ज़ियां - नफ़ा नुकसान का रजिस्टर )
मिसरा -ए-तरह जनाब वाली आसी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"दूर तुझ से ये ज़मीन-ओ-आसमाँ हो जाएँगे"
2122 2122 2122 212
फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
(बह्र: रमल मुसम्मन महजूफ़)
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (31-07-2018) को "सावन आया रे.... मस्ती लाया रे...." (चर्चा अंक-3049) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार आदरणीय
Deleteबहुत ग़ज़ब के सारे शेर ... हर शेर की कहन अदायगी लाजवाब ... ज़माने की बात कहते हुए ... कमाल की ग़ज़ल ... बधाई ...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय
Deleteवाह बहुत सुंदर ग़ज़ल कही है मज़ा आ गया जनाब।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
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ReplyDeleteआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 1 अगस्त 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत आभार
Deleteउम्दा बेहतरीन।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteबहुत बहुत आभार
Deleteबहुत कमाल के शेर, उम्दा ग़ज़ल
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
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