पाखी बन मैं उडूं
विशाल तुम समंदर
अंक की सीप बनूँ
सलोना वह सपना
देखूं मैं नींद लूं
गंध इक मनभावन
सुवासित करे मानस
सुबह की मीठी धूप
हथेली में भर लूं
असीम तुम आकाश
पाखी बन मैं उडूं
स्वरचित रचनाएं..... भाव सजाऊं तो छंद रूठ जाते हैं छंद मनाऊं तो भाव छूट जाते हैं यूँ अनगढ़ अनुभव कहते सुनते अल्हड झरने फूट जाते हैं -वन्दना
subah kee mithi dhoop ke ehsaas se bharee hatheliya achhi lagin
ReplyDeleteसुन्दर अहसासो से लबरेज़ कविता।
ReplyDeletevery nice blog yaha bhi aaye yaha bhi aaye
ReplyDeleteसुंदर सीधी सरल रचना. पढ़ कर अच्छा लगा.
ReplyDeleteअहा, क्या बात है.
ReplyDeleteबढ़िया कविता.
very nice mere blog me aane ke liye sukriya kripya aate rahiye yaha se aaye
ReplyDeletesundar kvita vandana ji badhai
ReplyDeleteसुंदर रचना। क्या कहने.
ReplyDeleteSaral shabdon ka saral sanyojan. Sundar kavita ke liye Badhaisundar
ReplyDeleteकोमल भाव की राग -अनुराग जगाती मुग्धा भाव की रचना .
ReplyDeleteअहसासों का बहुत अच्छा संयोजन है ॰॰॰॰॰॰ दिल को छूती हैं पंक्तियां ॰॰॰॰ आपकी रचना की तारीफ को शब्दों के धागों में पिरोना मेरे लिये संभव नहीं
ReplyDelete.... भविष्य में भी पढना चाहूँगा सो आपका फालोवर बन रहा हूँ ! शुभकामनायें
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