चलन अब जिंदगी का यूं सुधारा जा रहा है
कहीं अस्तित्व को अपने नकारा जा रहा है
बनाए चित्र तारों के अंधेरों के पटल पर
निकाला यूं खसारे से खसारा जा रहा है
बढ़ा तारीकियों का जोर पिघला है मुलम्मा
कि जबरन रंग सूरज का उतारा जा रहा है
अचानक यूं तेरा जाना न आया रास मुझको
मेरे हर रोम से तुझको पुकारा जा रहा है
वो जो खुद टूटकर भी दे रहा था आस हमको
चमक अब आखिरी देकर सितारा जा रहा है
बिखरने के भी होते हैं किसी के ठाठ ऐसे
महक देकर वो फूलों का इदारा जा रहा है
खिले हैं फूल वैसे ही तेरे आंगन में माई
जिन्हें सूनी सी आंखों से निहारा जा रहा है
मां की याद में___
कहीं अस्तित्व को अपने नकारा जा रहा है
बनाए चित्र तारों के अंधेरों के पटल पर
निकाला यूं खसारे से खसारा जा रहा है
बढ़ा तारीकियों का जोर पिघला है मुलम्मा
कि जबरन रंग सूरज का उतारा जा रहा है
अचानक यूं तेरा जाना न आया रास मुझको
मेरे हर रोम से तुझको पुकारा जा रहा है
वो जो खुद टूटकर भी दे रहा था आस हमको
चमक अब आखिरी देकर सितारा जा रहा है
बिखरने के भी होते हैं किसी के ठाठ ऐसे
महक देकर वो फूलों का इदारा जा रहा है
खिले हैं फूल वैसे ही तेरे आंगन में माई
जिन्हें सूनी सी आंखों से निहारा जा रहा है
मां की याद में___
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteउम्दा ग़ज़ल
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteबहुत बहुत आभार
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