Thursday, March 12, 2020

निकाला यूं खसारे से खसारा जा रहा है

चलन अब जिंदगी का यूं सुधारा जा रहा है
कहीं अस्तित्व को अपने नकारा जा रहा है
बनाए चित्र तारों के अंधेरों के पटल पर
निकाला यूं खसारे से खसारा जा रहा है
बढ़ा तारीकियों का जोर पिघला है मुलम्मा
कि जबरन  रंग सूरज का उतारा जा रहा है
अचानक यूं तेरा जाना न आया रास मुझको
मेरे हर रोम से तुझको पुकारा जा रहा है
वो जो खुद टूटकर भी दे रहा था आस हमको
चमक अब आखिरी देकर सितारा जा रहा है
बिखरने के भी होते हैं किसी के ठाठ ऐसे
महक देकर वो फूलों का इदारा जा रहा है
खिले हैं फूल वैसे ही तेरे आंगन में माई
जिन्हें सूनी सी आंखों से निहारा जा रहा है

मां की याद में___

5 comments:

आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

Followers

कॉपी राईट

इस ब्लॉग पर प्रकाशित सभी रचनाएं स्वरचित हैं तथा प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं यथा राजस्थान पत्रिका ,मधुमती , दैनिक जागरण आदि व इ-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं . सर्वाधिकार लेखिकाधीन सुरक्षित हैं