कैसे कह दूं
कि समय के फ्रेम में
अब नहीं हो तुम
तस्वीरें
जो कैमरे में क़ैद
नहीं हो पाईं
मूल रंगों में
मेरे आस-पास ही रहतीं हैं
घर की देहरी पर
प्रतीक्षा में
मुस्कुराती तुम
मेरी पहली कविता
छपने पर
आंसुओ के
मोती बिखराती तुम
आरती के
थाल के उस पार
दीये की लौ सी
दिपदिपाती तुम
संघर्ष के पलों में
पीठ सहलाती हुई तुम
अनगिनत रूपों में
मेरे पास ही रहती हो मां
समय के हर फ्रेम में
तुम्हीं रहती हो
_वंदना
कि समय के फ्रेम में
अब नहीं हो तुम
तस्वीरें
जो कैमरे में क़ैद
नहीं हो पाईं
मूल रंगों में
मेरे आस-पास ही रहतीं हैं
घर की देहरी पर
प्रतीक्षा में
मुस्कुराती तुम
मेरी पहली कविता
छपने पर
आंसुओ के
मोती बिखराती तुम
आरती के
थाल के उस पार
दीये की लौ सी
दिपदिपाती तुम
संघर्ष के पलों में
पीठ सहलाती हुई तुम
अनगिनत रूपों में
मेरे पास ही रहती हो मां
समय के हर फ्रेम में
तुम्हीं रहती हो
_वंदना
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 09/08/2019 की बुलेटिन, "काकोरी कांड के सभी जांबाज क्रांतिकारियों को नमन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteभावपूर्ण सुंदर कोमल अभिव्यक्ति।
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