अगले जनम भी
कतई नहीं बनना
मुझे अमरबेल
न लाजवंती
न सूरजमुखी
कतई नहीं
हां बनना है
कोई पौधा
चाहे कास का
या फिर हरी दूब
हथेली पर ठहरी हुई
शबनम लिए
_वंदना
स्वरचित रचनाएं..... भाव सजाऊं तो छंद रूठ जाते हैं छंद मनाऊं तो भाव छूट जाते हैं यूँ अनगढ़ अनुभव कहते सुनते अल्हड झरने फूट जाते हैं -वन्दना
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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर