मुस्कुरा कर बुला गया है मुझे
एक बच्चा रिझा गया है मुझे
सांसों में जागी संदली खुशबू
कोई देकर सदा गया है मुझे
दीप बनकर जलूँ निरंतर मैं
जुगनू देकर दुआ गया है मुझे
दुख मेरा दूजों से लगे कमतर
सब्र करना तो आ गया है मुझे
हक में उसके सदा जो रहता था
आइना फिर दिखा गया है मुझे
थी सराबों की असलियत जाहिर
फिर भी क्यूँकर छला गया है मुझे
अब शिकायत हवा से कैसे हो
कोई अपना बुझा गया है मुझे
मिसरा- ए- तरह सब्र करना तो आ गया है मुझे जनाब समर कबीर साहब की ग़ज़ल से
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (24-10-2018) को "सुहानी न फिर चाँदनी रात होती" (चर्चा अंक-3134) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
आभार आदरणीया
Deleteकोई अपना बुझा गया है मुझे ...
ReplyDeleteबहुत गहरा ... दूर तक जाने वाला शेर ... जान है पूरी ग़ज़ल की ...
और भी शेर काबिले तारीफ़ हैं ... लाजवाब ग़ज़ल ...
बहुत बहुत आभार आदरणीय
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