पथ अंधेरे लग रहे मुझको सभी
मां मेरी रहबर रही तू ज्योत सी
ख्वाहिशें खिलती थी तेरी गोद में
रिक्त लेकिन अब है मेरी अंजुरी
तू अथक ही जागती थी रात दिन
ख्वाब मेरे सींचे तूने हर घड़ी
याद करती हैं तुझे फुलवारियां
मुस्कुराहट बिन तेरी सब सूखती
भाग्य ने छीना है कैसे मान लूं
पुष्पगंधा तू सदा मन में बसी
धुन नयी देती रही तू जोश को
माधुरी घोले रही बन बांसुरी
मां कहां है लौट आ फिर से जरा
दूरियां निस्सीम कैसी बेबसी
मां को समर्पित
माँ का न होना हमेशा खलता है ... उसके रहते जितनी भी उमे हो इंसान बच्चा रहता है ...
ReplyDeleteमन के कोमल भाव माँ की यादों को समर्पित भाव दिल को छूते हैं ...
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 16/04/2019 की बुलेटिन, " सभी ठग हैं - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 20 अप्रैल 2019 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteमन को छूते अल्फ़ाज़, मां की अकथ महिमा के।
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