Monday, April 15, 2019

मां



पथ अंधेरे लग रहे मुझको सभी
मां मेरी रहबर रही तू ज्योत सी

ख्वाहिशें खिलती थी तेरी गोद में
रिक्त लेकिन अब है मेरी अंजुरी

तू अथक ही जागती थी रात दिन
ख्वाब मेरे सींचे तूने हर घड़ी

याद करती हैं तुझे फुलवारियां
मुस्कुराहट बिन तेरी सब सूखती

भाग्य ने छीना है कैसे मान लूं
पुष्पगंधा तू सदा मन में बसी

धुन नयी देती रही तू जोश को
माधुरी घोले रही बन बांसुरी

मां कहां है लौट आ फिर से जरा
दूरियां निस्सीम कैसी बेबसी

मां को समर्पित

5 comments:

  1. माँ का न होना हमेशा खलता है ... उसके रहते जितनी भी उमे हो इंसान बच्चा रहता है ...
    मन के कोमल भाव माँ की यादों को समर्पित भाव दिल को छूते हैं ...

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 16/04/2019 की बुलेटिन, " सभी ठग हैं - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 20 अप्रैल 2019 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. वाह बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  5. मन को छूते अल्फ़ाज़, मां की अकथ महिमा के।

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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इस ब्लॉग पर प्रकाशित सभी रचनाएं स्वरचित हैं तथा प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं यथा राजस्थान पत्रिका ,मधुमती , दैनिक जागरण आदि व इ-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं . सर्वाधिकार लेखिकाधीन सुरक्षित हैं