ग़ज़ल-
सच है किस्मत जो चाल चलती है
लहज़ा अपना कहाँ बदलती है
धूप नवयौवना-सी खिलती है
माथे कुमकुम सजाये चलती है
भोर आई हँसा खिला सूरज
नभ पे तितली कोई मचलती है
ज़िन्दगी अधलिखी इबारत-सी
रूह पढ़ती निखरती चलती है
गूंजे मन में मधुर-सी शहनाई
याद कोई पुरानी छलती है
मौन बाँचे वरक़ वो जीवन के
उम्र की शाम ऐसे ढलती है
सच में गुलशन बहार है या फिर
काग़ज़ी गुलफ़िशां ही छलती है
- वंदना
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