बहुत तेज है धूप संसार की
सुलभ छाँव तेरे लिए प्यार की
उदासी मिटा वेदना मैं हरूँ
व्यथा पीर आये सताए मुझे
मगर आँच छूने न पाए तुझे
न डर तू सलोनी कि मैं साथ हूँ
धरे आज काँधे सबल हाथ हूँ
सुना था कि कहते तुझे सब सदय
धरा जब हिली तो न कांपा हृदय
बता लेख कैसे विधाता लिखा
कहीं क्रूर कुछ भी न तुझको दिखा
सरलमन बहन तू सरस काव्य है
मधुरतम प्रियंकर व स्तुत भाव्य है
बड़ा तो नहीं मैं मगर भ्रातृ
हूँ
सुरक्षा वचन से बँधा कर्तृ हूँ
-वंदना
चित्र गूगल से साभार
इस चित्र पर कविता आयोजन भी नेट से साभार
बेहद मर्मस्पर्शी रचना, संवेदनात्मक तथा भावपूर्ण!!
ReplyDeletevery touching
ReplyDeleteबेहद मर्मस्पर्शी रचना
ReplyDeleteबहुत तेज है धूप संसार की
ReplyDeleteसुलभ छाँव तेरे लिए प्यार की
उदासी मिटा वेदना मैं हरूँ
अरी लाडली तू बता क्या करूँ ...
मर्म को छूते हुए भाव ... भाई कितना भी छोटा हो ... बहन का दर्द नहीं देख पाता ... शायद इसी को सच्चा प्रेम भी कहते हैं ...
व्यथा पीर आये सताए मुझे
ReplyDeleteमगर आँच छूने न पाए तुझे
न डर तू सलोनी कि मैं साथ हूँ
धरे आज काँधे सबल हाथ हूँ
अमोल भावनाओं का सुंदर निरूपण ।