उद्देश्य मेरा भीड़
रिझाना तो है नहीं
जो चब चुका उसी को
चबाना तो है नहीं
निर्दोष है मरीचिका
बदनाम क्यूँ भला
जब सिन्धु सी हो
प्यास अघाना तो है नहीं
उलझाते हैं नियम भले
ही लाख नित बने
परिणाम इनका गाँठ
छुड़ाना तो है नहीं
उनको सलाम तीर चला
कर जो यह कहें
‘अपना भी कोई खास
निशाना तो है नहीं ‘
अब दे रहे हैं दोष
हवाओं के जोर को
क्यूँ कट गयी पतंग
बहाना तो है नहीं
आकर करे वो बात भला किसलिए कहो
कारूं का मेरे पास खज़ाना तो है नहीं
फिर फुरसतों में बैठ
खंगालेंगे चाँदनी
वादा किया था कोरा
बयाना तो है नहीं
‘अपना भी कोई खास निशाना तो है नहीं ‘
तरही मिसरा : शायर जनाब मुज़फ्फर हनफ़ी साहब की एक ग़ज़ल से
निर्दोष है मरीचिका बदनाम क्यूँ भला
ReplyDeleteजब सिन्धु सी हो प्यास अघाना तो है नहीं
एक से बढ़कर पंक्तियाँ लिखी है ..... वाह
वाह....हर बार की तरह कमाल ग़ज़ल...
ReplyDeleteअब दे रहे हैं दोष हवाओं के जोर को
क्यूँ कट गयी पतंग बहाना तो है नहीं
सादे , सरल और बेहतरीन शेर...
अनु
बहुत सुंदर रचना ! मंगलकामनाएं !
ReplyDeleteबहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है...सभी शेर पसंद आये...दिली बधाई स्वीकारें...
ReplyDeleteएक सुन्दर अर्थपूर्ण ग़ज़ल लिखी है आपने. पढ़कर अच्छा लगा.
ReplyDeleteफिर फुरसतों में बैठ खंगालेंगे चाँदनी
ReplyDeleteवादा किया था कोरा बयाना तो है नहीं।
‘खंगालेंगे चांदनी‘....वाह, बिल्कुल नया प्रयोग।
बेहतरीन..बहुत बढि़या !
उनको सलाम तीर चला कर जो यह कहें
ReplyDelete‘अपना भी कोई खास निशाना तो है नहीं ‘
बहुत ही गहरा भाव लिए ... लाजवाब ग़ज़ल और हर शेर उम्दा ...
वाह!....
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