Sunday, May 25, 2014

‘अपना भी कोई खास निशाना तो है नहीं ‘

उद्देश्य मेरा भीड़ रिझाना तो है नहीं
जो चब चुका उसी को चबाना तो है नहीं

निर्दोष है मरीचिका बदनाम क्यूँ भला
जब सिन्धु सी हो प्यास अघाना तो है नहीं

उलझाते हैं नियम भले ही लाख नित बने
परिणाम इनका गाँठ छुड़ाना तो है नहीं

उनको सलाम तीर चला कर जो यह कहें
‘अपना भी कोई खास निशाना तो है नहीं ‘

अब दे रहे हैं दोष हवाओं के जोर को
क्यूँ कट गयी पतंग बहाना तो है नहीं 


आकर करे वो बात भला किसलिए कहो 
कारूं का मेरे पास खज़ाना तो है नहीं 


फिर फुरसतों में बैठ खंगालेंगे चाँदनी
वादा किया था कोरा बयाना तो है नहीं


‘अपना भी कोई खास निशाना तो है नहीं ‘
तरही मिसरा :  शायर जनाब मुज़फ्फर हनफ़ी साहब की एक ग़ज़ल से
  

8 comments:

  1. निर्दोष है मरीचिका बदनाम क्यूँ भला
    जब सिन्धु सी हो प्यास अघाना तो है नहीं

    एक से बढ़कर पंक्तियाँ लिखी है ..... वाह

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  2. वाह....हर बार की तरह कमाल ग़ज़ल...

    अब दे रहे हैं दोष हवाओं के जोर को
    क्यूँ कट गयी पतंग बहाना तो है नहीं

    सादे , सरल और बेहतरीन शेर...

    अनु

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  3. बहुत सुंदर रचना ! मंगलकामनाएं !

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  4. बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है...सभी शेर पसंद आये...दिली बधाई स्वीकारें...

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  5. एक सुन्दर अर्थपूर्ण ग़ज़ल लिखी है आपने. पढ़कर अच्छा लगा.

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  6. फिर फुरसतों में बैठ खंगालेंगे चाँदनी
    वादा किया था कोरा बयाना तो है नहीं।

    ‘खंगालेंगे चांदनी‘....वाह, बिल्कुल नया प्रयोग।
    बेहतरीन..बहुत बढि़या !

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  7. उनको सलाम तीर चला कर जो यह कहें
    ‘अपना भी कोई खास निशाना तो है नहीं ‘
    बहुत ही गहरा भाव लिए ... लाजवाब ग़ज़ल और हर शेर उम्दा ...

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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